अभी थोड़ा दूर और है मंजिल....
अभी थोड़ा दूर और है, मंज़िल
तो क्या,चलो,चलते हैं..........
सूरज नहीं निकला तो क्या हुआ?
चलो,हम ही निकलते हैं..........
वो जो कहते हैं कि दिल में आग लगी है,
बोल दो,जीतने के लिये, हम भी उबलते हैं...
जिन्हें गुमान है न,अपनी शोहरत का,
बता दो,ज़नाज़े ज़मीं पर ही टहलते हैं....
ये गर्दिश का हवाला क्या देना,
हम सूरज हैं,उगने के लिए ढलते हैं.......
वक़्त बता ही देगा "सिद्धार्थ"
ये दिन हैं,,सबके बदलते हैं.....
अभी थोड़ा दूर और है मंज़िल,
तो क्या,,चलो चलते हैं............
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
9792016971
तो क्या,चलो,चलते हैं..........
सूरज नहीं निकला तो क्या हुआ?
चलो,हम ही निकलते हैं..........
वो जो कहते हैं कि दिल में आग लगी है,
बोल दो,जीतने के लिये, हम भी उबलते हैं...
जिन्हें गुमान है न,अपनी शोहरत का,
बता दो,ज़नाज़े ज़मीं पर ही टहलते हैं....
ये गर्दिश का हवाला क्या देना,
हम सूरज हैं,उगने के लिए ढलते हैं.......
वक़्त बता ही देगा "सिद्धार्थ"
ये दिन हैं,,सबके बदलते हैं.....
अभी थोड़ा दूर और है मंज़िल,
तो क्या,,चलो चलते हैं............
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
9792016971
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