ढूंढ ढूंढ कर चलो बिखारी को अनाज दें...

🌲🌲🌲🌲🌲🌲
,, *ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें* ,,
🍁🍁🍁🍁
*छोड़ दो दिखावटें मिलावटें भी छोड़ दो*
*ऊंच नीच के तमाम बन्धनों को तोड़ दो*
*त्याग दो मनुष्यता को जो भी खोखला करे*
*पाप से भरे सभी घड़ों को आज फोड़ दो,,,*
*मिल के धर्म कर्म को आज फिर आवाज दें,,,*
*ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,*
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
*स्वर्ग जैसी भूमि पर ये फैली कैसे भुखमरी*
*हर तरफ़ तनाव की वृहत बरात क्यों खड़ी?*
*हमको जान देने वाला बाप परेशान क्यों?*
*दूध पिया जिसका वही माँ है आज अधमरी,,*
*ज़िन्दगी की जंग में बिगुल स्वरूप साज़ दें,*
*ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,,,*
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
*अपने पूर्वजों की तुम कहानी नहीं भूलना*
*छोड़ कर गये जो वो निशानी नहीं भूलना,,*
*हर तरफ़ अमन सुकून के लिये जो मर गये,,,*
*भाई बहन तुम वो कुर्बानी नहीं भूलना,,,,,,,,,,,*
*गालियों को छोड़ प्रेम से भरे अल्फाज़ दें*
*ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,*
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
*मंदिरों में देवताओं का पुनः निवास हो*
*मस्जिदों में फ़िर से प्रेम भाव एहसास हो*
*नीचता से पूर्ण राजनीति छोड़कर पुनः*
*हम सभी का भाईचारे में वही विश्वास हो,,*
*फिर सुयोग्य जन को अपने शीष का ये ताज दें*
*ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,,*
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
*नफरतों को भूलकर के बैर भाव भूलकर*
*फिर एक दूसरे की बांह में ही झूलकर*
*बाँटिये ख़ुशी को अपनापन लुटाइये पुनः*
*धरती माता नाचने लगें ख़ुशी से फूलकर*
*प्रेम से भरे समय आओ कर आगाज़ दें,,*
*ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,,,,*
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
                        *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
                           *9792016971*
                    *छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

Comments

Popular posts from this blog

महल बनाओ पानी पर....

सुनो ग़रीब हूँ.......

ख़ूबसूरती का एहसास..और दिलजलों की प्यास