जो दिल ने सहा वो क़हर लिख रहा हूँ...

न दिन ना हि दिन का पहर लिख रहा हूँ,
जो दिल ने सहा वो, क़हर, लिख रहा हूँ......

तड़पता रहा पर, न दम मेरा निकला,
मोहब्बत है ऐसा ,ज़हर, लिख रहा हूँ.........

ये दिल तोड़कर के, रहेगी कहाँ पर?
तेरे नाम पूरा,शहर,लिख रहा हूँ..............

क़यामत है ऐसी तेरी इस नज़र में,
की सागर में उठती ,लहर, लिख रहा हूँ.....

हुआ ये क्या "सिद्धार्थ" मेरी नज़र को,
फ़क़त बूँद को क्यों? नहर,लिख रहा हूँ.....

                 सिद्धार्थ अर्जुन
                9792016971

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