भारत को पुनः महान करो.....
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,,,,,,,,,, *भारत को पुनः महान करो* ,,,,,,,,,,
🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*कुछ पृष्ठ अभी तक भरे नहीं*
*कुछ कथ्य भी अब तक बाक़ी हैं,,,,*
*कुछ मंथन की अभिलाषा है*
*कुछ तथ्य अभी तक बाक़ी हैं,,,,*
*अपने जीवन के सार तत्व का*
*ख़ुद ही अनुसन्धान करो,,,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*जिस ओर नज़ाकत नहीं रही*
*उस ओर नज़र को दौड़ाओ,,,,,*
*पतझड़ कहकर मत शांत रहो*
*उपवन में फिर सावन लाओ,,,,*
*मानवता की प्यासी धरती*
*आओ फिर कोई निदान करो,,,,,,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*अधरों पर हो मुस्कान सदा*
*वाणी में ज्ञान की गंगा हो,,,,,*
*हो तेज़ लालिमा माथे पर*
*तन निर्मल अरु मन चंगा हो,,,,,,*
*सदाचरण के गहने पहनों*
*प्रेम में नित स्नान करो,,,*
*भारत पुनः महान करो,,,,,*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,,,*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*सदियों की श्रृंखला रही*
*तुम उसमे नयी कड़ी जोड़ो*
*जिस ओर है पथ परमारथ का*
*उस दिशा में अपने पग मोड़ो,,,,,,*
*हो सारी दुनिया नतमस्तक*
*ऐसा कोई विधान करो,,,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो,,*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*चाँद की सैर बहुत कर ली*
*अब आओ दिल की सैर करें*
*मन से मन का धागा जोड़ें*
*न कभी किसी से बैर करें,,,,,*
*मानव हो पर अब मानव को*
*मानव से इंसान करो,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,,*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*9792016971*
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,,,,,,,,,, *भारत को पुनः महान करो* ,,,,,,,,,,
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*कुछ पृष्ठ अभी तक भरे नहीं*
*कुछ कथ्य भी अब तक बाक़ी हैं,,,,*
*कुछ मंथन की अभिलाषा है*
*कुछ तथ्य अभी तक बाक़ी हैं,,,,*
*अपने जीवन के सार तत्व का*
*ख़ुद ही अनुसन्धान करो,,,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*जिस ओर नज़ाकत नहीं रही*
*उस ओर नज़र को दौड़ाओ,,,,,*
*पतझड़ कहकर मत शांत रहो*
*उपवन में फिर सावन लाओ,,,,*
*मानवता की प्यासी धरती*
*आओ फिर कोई निदान करो,,,,,,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,*
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*अधरों पर हो मुस्कान सदा*
*वाणी में ज्ञान की गंगा हो,,,,,*
*हो तेज़ लालिमा माथे पर*
*तन निर्मल अरु मन चंगा हो,,,,,,*
*सदाचरण के गहने पहनों*
*प्रेम में नित स्नान करो,,,*
*भारत पुनः महान करो,,,,,*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,,,*
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*सदियों की श्रृंखला रही*
*तुम उसमे नयी कड़ी जोड़ो*
*जिस ओर है पथ परमारथ का*
*उस दिशा में अपने पग मोड़ो,,,,,,*
*हो सारी दुनिया नतमस्तक*
*ऐसा कोई विधान करो,,,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो,,*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,*
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*चाँद की सैर बहुत कर ली*
*अब आओ दिल की सैर करें*
*मन से मन का धागा जोड़ें*
*न कभी किसी से बैर करें,,,,,*
*मानव हो पर अब मानव को*
*मानव से इंसान करो,,,,,,,,*
*भारत पुनः महान करो*
*भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,,*
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*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*9792016971*
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