पेशे से कारीगर हूँ मैं....
🌷 *पेशे से कारीगर हूँ मैं* 🌷
🌷🌷🌷
*बिखरी कड़ियों को जोड़ जोड़*
*जंजीर बनाता रहता हूँ,,,,,,,,,,,*
*कभी औरों की मैं सुनता हूँ*
*कभी अपनी सुनाता रहता हूँ,,,,,*
*दिल और दिमाग़ में बसता हूँ*
*पहले पन्ने की ख़बर हूँ मैं,,*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷
*दुनिया में जिसे न मीत मिले*
*मैं उसको मीत बनाता हूँ,,,,*
*जिसको दुनिया ठुकराती है*
*मैं उससे प्रीत निभाता हूँ,,,,,,,,*
*रोते चेहरे खिल उठते हैं*
*शब्दों का ऐसा असर हूँ मैं*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷
*न चैन मिले जब दुनिया में*
*आ जाना मेरी पनाहों में*
*कोई न आश्रय दे तुमको*
*आ जाना मेरी बाँहों में,,,,,,,*
*दिल है मेरा शालीन शिविर*
*श्रद्धा से भरा शहर हूँ मैं,,,,,*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷
*जब तक है मेरी साँस कोई*
*संकट में न रहने पाये*
*कोशिश है सबका गम ले लूँ*
*न दर्द कोई सहने पाये,,,,*
*बाँटता फिरूँ मैं मधुरिम रस*
*नटखट हूँ मुरलीधर हूँ मैं*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷
*आओ सब मेरे निकट रहो*
*जी भर के सबको प्यार करूँ*
*आया हूँ तुम्हारे ही खातिर*
*तुम सब पर जान निसार करूँ,,*
*तुम सब हो मेरे राजकुँवर*
*तुम सबका छत्र चँवर हूँ मैं*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*बाराबंकी,,,,9792016971*
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*बिखरी कड़ियों को जोड़ जोड़*
*जंजीर बनाता रहता हूँ,,,,,,,,,,,*
*कभी औरों की मैं सुनता हूँ*
*कभी अपनी सुनाता रहता हूँ,,,,,*
*दिल और दिमाग़ में बसता हूँ*
*पहले पन्ने की ख़बर हूँ मैं,,*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,*
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*दुनिया में जिसे न मीत मिले*
*मैं उसको मीत बनाता हूँ,,,,*
*जिसको दुनिया ठुकराती है*
*मैं उससे प्रीत निभाता हूँ,,,,,,,,*
*रोते चेहरे खिल उठते हैं*
*शब्दों का ऐसा असर हूँ मैं*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,*
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*न चैन मिले जब दुनिया में*
*आ जाना मेरी पनाहों में*
*कोई न आश्रय दे तुमको*
*आ जाना मेरी बाँहों में,,,,,,,*
*दिल है मेरा शालीन शिविर*
*श्रद्धा से भरा शहर हूँ मैं,,,,,*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,*
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*जब तक है मेरी साँस कोई*
*संकट में न रहने पाये*
*कोशिश है सबका गम ले लूँ*
*न दर्द कोई सहने पाये,,,,*
*बाँटता फिरूँ मैं मधुरिम रस*
*नटखट हूँ मुरलीधर हूँ मैं*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,,*
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*आओ सब मेरे निकट रहो*
*जी भर के सबको प्यार करूँ*
*आया हूँ तुम्हारे ही खातिर*
*तुम सब पर जान निसार करूँ,,*
*तुम सब हो मेरे राजकुँवर*
*तुम सबका छत्र चँवर हूँ मैं*
*कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ*
*पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,*
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*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*बाराबंकी,,,,9792016971*
Nice bhai
ReplyDelete👌👌👍💕
ReplyDeleteVery nice Sid😍👌👌
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