तब तलक़ पथिक चलते जाना....
🍁🌷🐢🐢🌷🍁
,, *तब तलक़ पथिक चलते जाना* ,,
🐢🐢🐢🐢
*दुनिया दारी के चक्कर में*
*अपना अस्तित्व मिटाओ न,,*
*औरों के करतब देख रहे*
*अपना भी हुनर दिखाओ न,,,,,*
*तुम मुक्त गगन के पंछी हो*
*उड़ने में तनिक न घबराना,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*तब तलक़ पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢
*कितने भी नज़ारे नज़र पड़ें पर*
*नज़र सदा हो मंजिल पर,,,,,*
*नाविक मत तूफान देखना*
*ध्यान लगाना साहिल पर,,,*
*अतल समुंदर के अंदर से*
*रत्न ढूंढकर ले आना,,,,,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*तब तलक़ पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢🐢
*गीता की वाणी तुम ही हो*
*तुम ही तत्वों का सार प्रिये,,,*
*तुम ही हो ज्ञान की गागर और*
*तुम ऊर्जा के भंडार प्रिये,,,*
*कितना भी तेज हवायें हों*
*तुम दीपक हो जलते जाना,,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢🐢🐢
*बीते कल का प्रतिबिंब हो तुम*
*आगामी कल की सूरत हो,,,,,,*
*जिस पर हैं चिन्ह विजय पथ के*
*ऐ वीर तुम्ही वो मूरत हो,,,,,*
*रास्ते में कोई मायूस मिले*
*जज़्बा उनमे भरते जाना,,,,,,,,*
*जब तक न मिले न मंजिल अपनी*
*बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢🐢🐢🐢🐢
*है समय बहुत कम उठो चलो*
*अभियान का तुम आगाज़ करो,,,*
*जो कल करना है कल करना*
*पर काम आज का आज करो,,,,,,,,*
*इस वृहत गगन की गोदी में*
*है विजयपताका फहराना,,,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢🐢
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
*9792016971*
,, *तब तलक़ पथिक चलते जाना* ,,
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*दुनिया दारी के चक्कर में*
*अपना अस्तित्व मिटाओ न,,*
*औरों के करतब देख रहे*
*अपना भी हुनर दिखाओ न,,,,,*
*तुम मुक्त गगन के पंछी हो*
*उड़ने में तनिक न घबराना,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*तब तलक़ पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢
*कितने भी नज़ारे नज़र पड़ें पर*
*नज़र सदा हो मंजिल पर,,,,,*
*नाविक मत तूफान देखना*
*ध्यान लगाना साहिल पर,,,*
*अतल समुंदर के अंदर से*
*रत्न ढूंढकर ले आना,,,,,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*तब तलक़ पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,*
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*गीता की वाणी तुम ही हो*
*तुम ही तत्वों का सार प्रिये,,,*
*तुम ही हो ज्ञान की गागर और*
*तुम ऊर्जा के भंडार प्रिये,,,*
*कितना भी तेज हवायें हों*
*तुम दीपक हो जलते जाना,,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,,*
🐢🐢🐢🐢🐢🐢🐢
*बीते कल का प्रतिबिंब हो तुम*
*आगामी कल की सूरत हो,,,,,,*
*जिस पर हैं चिन्ह विजय पथ के*
*ऐ वीर तुम्ही वो मूरत हो,,,,,*
*रास्ते में कोई मायूस मिले*
*जज़्बा उनमे भरते जाना,,,,,,,,*
*जब तक न मिले न मंजिल अपनी*
*बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,,*
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*है समय बहुत कम उठो चलो*
*अभियान का तुम आगाज़ करो,,,*
*जो कल करना है कल करना*
*पर काम आज का आज करो,,,,,,,,*
*इस वृहत गगन की गोदी में*
*है विजयपताका फहराना,,,,,,*
*जब तक न मिले मंजिल अपनी*
*बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,*
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*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
*9792016971*
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