आइये,,आइये,,आप भी आइये...

आइये,आइये,,आप भी आइये,
फिर से रौशन हमारा ये संसार हो...
कर सके न जो पूरा वचन उस दफ़ा,
है तमन्ना की पूरा वो इस बार हो......
आइये,आइये........

तेरे माथे पे कुन्दन लगा दूँ सनम,
एक क्या, मैं लुटा दूँ ,हज़ारों जनम,
अप्सराओं को भी लाज़ आने लगे,
इतना सुंदर,तुम्हारा भी,,श्रृंगार हो...
आइये,आइये,,...........

क्या चुराई है तुमने कली से महक?
क्यों हमारी ये महफ़िल रही है बहक?
नूर से लायी हो तुम सूर्य से छीनकर,
इस धरा पर विधाता का उपहार हो...
आइये,आइये,,.......

आज़ फिर कुछ भ्रमर गुनगुनाने लगे,
नभ से बादल भी राग सुनाने लगे,
छेड़ दो रागिनी तुम भी गर झूमकर,
मेघ बरसें,पपीहों का उद्धार हो........
आइये,आइये,,..........

शून्य है मन मेरा,कल्पना थम गयी,,
रूह भी खो गयी,,नब्ज़ भी जम गयी,
सिर्फ इतना बचा है,सुनो ध्यान से,
मैं तुम्हारा,सनम!,तुम,मेरा प्यार हो.....
आइये,आइये,,..........

               कवि सिद्धार्थ अर्जुन

Comments

  1. जबरजस्त भाई

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  2. बहुत खूब...👏👏👏

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  3. बहुत सुंदर रचना ❤

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  4. लाजवाब ... मित्र 😊

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  5. सुंदर।
    ज्योस्तुते

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  6. बहुत सुंदर भैया

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  7. क्या बात है
    अति सुंदर

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