वर्तमान में महिला के पास समय की कमी,क्यों,कारण,निवारण..

*वर्तमान समय में घरेलू महिलाओं में समय की कमी क्यों?
कारण और निवारण.....*

आमतौर पर हमारे समाज में एक वाक्य बहुत शान से बोला जाता है कि *महिला आधा समाज* होती है परंतु आधुनिक परिदृश्यों पर दृष्टिपात किया जाये तो संभवतः निष्कर्ष कुछ भिन्न प्राप्त होते हैं।यदि कहा जाये तो यह सही ही होगा की महिला आधा समाज नहीं बल्कि *महिला ख़ुद एक समाज है* । ऐसे में महिला और उससे संबंधित अन्य पहलुओं की प्रासंगिकता पढ़ जाती है और इन पर बात करना आवश्यक हो जाता है।
ऐसा ही एक पहलू है *वर्तमान समय में महिलाओं में समय की कमी* । हम इस विषय पर व्यापक प्रकाश डालें इसके लिए हमें कुछ अन्य जानकारियां भी होनी चाहिए जैसे की समाज में कितने प्रकार की महिलायें हैं,व तमाम अन्य बातें..
।तो सबसे पहले यदि बात की जाये समाज की तो जिस प्रकार हमारा समाज मुख्यतः शहरी और ग्रामीण दो प्रकार के अंचलों के मध्य पल्लवित है ठीक उसी तरह हमारे समाज में महिलायें भी दो प्रकार की हैं पहली जो गांव से सम्बन्ध रखती हैं और दूसरी जो शहर से सम्बन्ध रखती हैं।
इसके बाद यदि हम इनके विश्लेषण में और आगे बढ़ें तो गांव और शहर दोनों जगह की महिलाओं के दो रूप फिर सामने आते हैं एक वह स्वरूप जिसमें महिलायें स्वाधीन या मालिकाना स्तर पर होती हैं तो दूसरी ओर पराधीन या सरल शब्दों में ऐसी महिलायें जो मज़दूरी के द्वारा अपना भरण पोषण करती हैं,आती हैं।
महिलाओं के ये स्वरूप गांव और शहर हर जगह वर्तमान समय में विद्यमान हैं अब हम बात करते हैं इनके समय की कि क्यों कम है इनके पास समय तो पुनः हमारे सामने कई नये परिदृश्य उभर कर आ जाते हैं जिनका हम विवेचन करेंगे।
सबसे पहली बात आधुनिकता का बढ़ता हुआ दौर और प्रबल संघर्ष,,प्रातःकाल उठते ही नाश्ता तैयार करो बच्चों को स्कूल जाना है तो पतिदेव को ऑफिस के लिये देर हो रही है,बेटा बाथरूम से बोलरहा है मम्मी मेरा टॉवेल छूट गया दे दीजिए तो पतिदेव कह रहे हैं कि मेरी टाई नहीं मिल रही है,अरे वो मेरा शर्ट तो तुमने प्रेष ही नहीं किया इतने में खुले बाल लेकर बिटियारानी आ जाती हैं,मम्मी चोटी कर दो स्कूल के लिये देर हो रही है..अरे तभी बरामदे से ससुर जी के खाँसने की आवाज़ आने लगती है हो सकता है उनको गर्म पानी की ज़रूरत हो तो दूसरी ओर बूढ़ी सास भी इंतज़ार कर रही है कि कब बहूरिया आये और तेलमालिश कर दे,अब देखो इतने सारे काम सुबह सुबह अब सोंचों महिला किस गति से दौड़ रही होगी,अरे रुको इन सबके चक्कर में नाश्ता तो गैस पर जल ही गया अब लो नयी आफ़त तैयार...ख़ैर यह महिला का एक रूप और उसका एक पहर है,,अब इसी में हम महिला के दूसरे रूप जिसे हम नौकरानी की संज्ञा देते हैं उसको जोड़कर देखो,जब घर में इतने सारे काम होते हैं तब हम सहायता के लिए नौकरानी रखते हैं अब महिला के दोनों रूप एक साथ हैं गौर से देखिये,,अब जितना जल्दबाज़ी और परेशानियां प्रातःकाल में घर की महिला को होती है उतनी ही रफ़्तार से नौकरानी भी दौड़ती है बेचारी,अच्छा एक बात विचार करने योग्य और भी है कि जिन कार्यों को सम्पादित करवाने के लिए नौकरानी को रखा गया है,क्या उसके ख़ुद के घर में वह सारे कार्य नहीं हैं,,सब कुछ है अब सोंचों जरा वह यह सब काम पहले निपटा कर आयी है,या फिर वापस जाकर निपटायेगी।
कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है आप स्पष्ट देख पा रहे हैं इस परिदृश्य की क्या स्थिति रहती है,तो दूसरी ओर कुछ महिलायें ऐसी भी हैं जो ख़ुद भी ऑफिस जाती हैं तब,तब क्या ,आ गयी न बन्दर की बला तबेले के सर।
नौकरानी की भागमभाग बढ़ गयी,ज़िम्मेदारी भी।
यह तो बात एक शहरी पहलू की रही,यहीं पर गांव की ओर भी दौड़ चलिये वहां देखिये,,,बच्चों का स्कूल तो वहां भी है,सास-ससुर की देखरेख तो वहाँ भी है,,थोड़ा सा परिवर्तन यह है कि वहाँ पति ऑफिस न जाकर खेत जाता है,खैर काम तो वैसे हो करना है और यहां नौकरानी भी नहीं है और तो और यहां दो काम और बढ़ जाते हैं,खेत को खाना पानी शरबत ले जाना तो दूसरा जानवरों का चारपानी,मतलब गांव की सुबह और भी ज़्यादा भागदौड़ की रहती है।गांव में भी कुछ औरते खेतों में मज़दूरी करने जाती हैं तो यह सब समस्यायें हैं जिन पर बात होनी चाहिये ख़ैर,
जिसको जहां जाना था,चले गये,,
अब शहर की महिला लगी श्रृंगार में,ज़रूरी भी है उनका गहना है,,तो उधर गांव की महिला ने भी साज़-ओ-सौंदर्य का कार्य किया,अब क्या शहर की औरत ने खोली टीवी और शुरू सास-बहू का सीरियल,तो वहीं दूसरी ओर गांव में क्या हुआ की किसी ने दुर्दुरैया का न्योता दे दिया तो कोई चट्टमैया खिलाय रहा है तो कोई ढोल बजाकर गीत गाने के लिये बुलाता है और काम शुरू,अच्छा दूसरी ओर जिनको न्योता नहीं मिला या जो किसी कारणवश नहीं जा पायीं उनका क्या आसपास की दो चार औरतों को इकट्ठा किया और शुरू एक यहां की एक वहाँ की,अच्छा सब ऐसा ही नहीं करती हैं,कुछ औरते इसी समय गोबर के कंडे पाथने भी जाती हैं...कहने का मतलब गांव की महिला हमेशा शहर की महिला से ज़्यादा व्यस्त रहती है ,अब कारण कोई भी हो।
तो दूसरी तरफ जो ऑफिस या मज़दूरी करने गयी हैं उनका तो समय निश्चित है उससे पहले वो नहीं आ सकती तो ऐसी तमाम स्थितियां हैं जिन्हें हम नकार नहीं सकते,
फिर दोपहर बीतती है,शाम शुरू होती है और शुरू हो जाता है फिर वही प्रातः काल जैसा परिदृश्य,हाँ,कुछ काम जरूर बदले होते हैं जैसे शहर में बाज़ार जाना,कुत्ते को टहलाना तो गांव में चारा पानी करना आदि आदि।
धीरे-धीरे शाम,शाम से रात,और रात से सुबह हो जाती है लेकिन महिला,,क्या कहना,,सबसे बाद में सोना और सबसे पहले जगना उसकी मज़बूरी या मज़बूती अपने अपने शब्दों में जो चाहो कह लो,बन चुकी है।
ख़ैर क्या उपर्युक्त बातें समस्या हैं,नहीं समस्या तो नहीं हैं परंतु महिला के जीवन में इतनी व्यस्त स्थितियों का होना शायद अच्छा भी नहीं है। इसलिए ज़रूरी है कि इनकी स्थिति में सुधार हेतु कुछ नया किया जाये।
सबसे पहली बात तो यह है कि पुरुष अपना अधिकांश काम स्वयं करें महिलाओं पर अनावश्यक भार न डालें,
दूसरी बात अभी ऊपर आयी थी की घर की महिला की सहायता के लिये नौकरानी रखी जाती है,हम भली भांति जानते हैं कि वह नौकरानी भी एक महिला है और उसके ख़ुद के घर में भी वे सारे काम रहते हैं परंतु वह पैसे के लिये ऐसा करने पर मज़बूर रहती है इस स्थिति से महिला को निकालने के लिये हमें एक अनूठी पहल करनी होगी,क्यों न हम उस महिला को सपरिवार अपने घर में रख लें भले ही उसे बेतन कम दें,पर यदि उसका परिवार साथ होगा तो आपकी सेवा के साथ साथ उसका ख़ुद का कार्य भी होता रहेगा,,दोनों परिवार ख़ुशहाल रहेंगे।
इसी के साथ जो सबसे बड़ी बात है वह यह की महिला की अस्मिता और उसकी जिम्मेदारियों तथा महत्ता को ध्यान में रखकर सरकार को हर गांव,हर शहर में खाश कर महिलाओं के लिये कुछ लघु तथा कुटीर उद्योगों की व्यवस्था की जाये ताकि उन्हें खेतों में और फैक्ट्रियों में बैलों की तरह मज़दूरी न करनी पड़े।
उनका सम्मान बना रहे इसके लिये हर गांव हर शहर में यह व्यवस्था आवश्यक हो गयी है।
यदि ऐसा होता है तो महिलाओं को दरबदर भटकना नहीं पड़ेगा,,सही समय पर सब कुछ होगा,रुपया पैसा वगैरह वगैरह तो निश्चित है कि सब कुछ अच्छा होगा।

                    जय हिंद,जय भारत
             लेखक:- कवि सिद्धार्थ अर्जुन
            छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय
                    9792016971

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