कहीं से आ ही जायेगी,,हमारे नाम की चिट्ठी...
कहीं से आ ही जायेगी,,हमारे नाम की चिट्ठी,
एे रहनुमा!,,,,मेरा इंतज़ार मत करना.....
जंग,जंग होती हैं इसमें सुकून कहाँ,
ये ख़ता है,,, बार-बार मत करना.........
लूटने दौड़ आयेंगी कई वहसी घर तक,
कली को सुपुर्द-ए-अख़बार मत करना.......
ज़िस्म क़ुदरत का तराशा हुआ नगीना है,
ऐ दोस्त! ज़िस्म का क़ारोबार मत करना.....
सिद्धार्थ अर्जुन
एे रहनुमा!,,,,मेरा इंतज़ार मत करना.....
जंग,जंग होती हैं इसमें सुकून कहाँ,
ये ख़ता है,,, बार-बार मत करना.........
लूटने दौड़ आयेंगी कई वहसी घर तक,
कली को सुपुर्द-ए-अख़बार मत करना.......
ज़िस्म क़ुदरत का तराशा हुआ नगीना है,
ऐ दोस्त! ज़िस्म का क़ारोबार मत करना.....
सिद्धार्थ अर्जुन
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