जरा दर्द मेरा बंटाने तो आजा....

,, जरा दर्द मेरा बंटाने तो आजा ,,,

जो कसमें हैं उनको निभाने तो आजा
जरा दर्द मेरा बंटाने तो आजा.........

ये संसार काफ़ी है रुलाने के ख़ातिर
मेरे रहनुमा तू हँसाने को आजा........

तेरे रहते मेरी हुई हार कैसे??
मैं हारा हूँ मुझको जिताने को आजा....

चला ऐसा तूफ़ां बुझे दीप सारे
अँधेरा है दीपक जलाने को आजा.......

ये दर्द-ए-ज़िगर अब भला कौन समझे
मेरे पीर को तू मिटाने तो आजा..........

ये कहते हो "सिद्धार्थ" मोहब्बत बहुत है
कभी ये मोहब्बत जताने भी आजा......

                  कवि सिद्धार्थ अर्जुन

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