महल बनाओ पानी पर....
🌷🌷🌷🌷
,,,,,, *महल बनाओ पानी पर* ,,,,,,
🌷
*पुष्पित हो हर डाल तुम्हारी*
*महक उठे जीवन फुलवारी*
*अंग अंग नव रंग सजें और*
*मुट्ठी में हो काल तुम्हारी,,,,*
*कर्म करो नित धर्म भाव से*
*रखो नियंत्रण वाणी पर,,,,,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷🌷
*जीत हार का एक भाव से*
*खेल जिन्होंने खेला है,,,,,,,*
*निश्चित है भविष्य में उनके*
*नाम पे लगता मेला है,,,,,,,,,,,*
*नये शोध के पत्र लिखो अब*
*बीती सभी कहानी पर,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷🌷🌷
*जुड़कर रहो धरातल से*
*ऊँचे मकान को मत देखो*
*रत्न मिलेंगे मिट्टी में ही*
*आसमान को मत देखो,,,,,,,*
*फूंक फूंक कर कदम बढ़ा और*
*काबू हो मनमानी पर,,*
*अपना एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*लड़ना झगड़ना और बिगड़ना*
*व्यर्थ है तुम इनमें न पड़ना,,*
*जो तेरे अनुकूल न हो तुम*
*उस घोड़े पर कभी न चढ़ना,,,,*
*ऐ नादानों दुनिया जानो*
*शर्म करो नादानी पर,,,,,,,,,,,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*दुनिया मंगल ग्रह पे है और*
*तुम जुल्फ़ों में अटके हो,,,,,,*
*युग के वाहक अरे युवाओं*
*किन रस्तों में भटके हो,,,,,,,,,*
*नयी उड़ानों के भाषण दो*
*न कि राजा रानी पर,,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*ख्याति,सफ़लता और वैभव ये*
*मिल न सकें बाजारों में*
*इसको पाने के रास्ते हैं*
*कर्म लिखित अखबारों में,,,*
*जो कुछ भी कविता में लिखा है*
*लिख लो जिंदगानी पर*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
*9792016971*
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,,,,,, *महल बनाओ पानी पर* ,,,,,,
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*पुष्पित हो हर डाल तुम्हारी*
*महक उठे जीवन फुलवारी*
*अंग अंग नव रंग सजें और*
*मुट्ठी में हो काल तुम्हारी,,,,*
*कर्म करो नित धर्म भाव से*
*रखो नियंत्रण वाणी पर,,,,,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,*
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*जीत हार का एक भाव से*
*खेल जिन्होंने खेला है,,,,,,,*
*निश्चित है भविष्य में उनके*
*नाम पे लगता मेला है,,,,,,,,,,,*
*नये शोध के पत्र लिखो अब*
*बीती सभी कहानी पर,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,*
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*जुड़कर रहो धरातल से*
*ऊँचे मकान को मत देखो*
*रत्न मिलेंगे मिट्टी में ही*
*आसमान को मत देखो,,,,,,,*
*फूंक फूंक कर कदम बढ़ा और*
*काबू हो मनमानी पर,,*
*अपना एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,*
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*लड़ना झगड़ना और बिगड़ना*
*व्यर्थ है तुम इनमें न पड़ना,,*
*जो तेरे अनुकूल न हो तुम*
*उस घोड़े पर कभी न चढ़ना,,,,*
*ऐ नादानों दुनिया जानो*
*शर्म करो नादानी पर,,,,,,,,,,,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,,*
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*दुनिया मंगल ग्रह पे है और*
*तुम जुल्फ़ों में अटके हो,,,,,,*
*युग के वाहक अरे युवाओं*
*किन रस्तों में भटके हो,,,,,,,,,*
*नयी उड़ानों के भाषण दो*
*न कि राजा रानी पर,,,*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,,*
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*ख्याति,सफ़लता और वैभव ये*
*मिल न सकें बाजारों में*
*इसको पाने के रास्ते हैं*
*कर्म लिखित अखबारों में,,,*
*जो कुछ भी कविता में लिखा है*
*लिख लो जिंदगानी पर*
*अपना एक एक ख़्वाब सजाकर*
*महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,*
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*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
*9792016971*
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Aapki rachna kabil-e- traiff rehti hai hamesa hai. Bahut acha bhaiya ❤️
ReplyDeleteVery nice line avardaniy
ReplyDeleteVery nice line avardaniy
ReplyDelete😍😍👌
ReplyDeleteलाजवाब रचना भाई
ReplyDeleteशानदार भैया
ReplyDeleteBahut sundar creation siddharta
ReplyDeleteVery nice 😘😍👌👌
ReplyDeletebhut sundr 💖💖👌👌
ReplyDeleteVery nicr
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteख्याति, सफलता और वैभव
मिल ना सके बाजारों में
सत कर्म करना पड़ता है
इन्हें पाने की चाह में
उम्दा लिखा है
दिल को छू कर
दिल मे घर कर गई ये रचना