सूरज सा जलना है तुझे...

,,, *सूरज सा जलना है तुझे* ,,,,

*हर तरफ अँगार हैं,,है जल रहा पूरा जमाना*
*है कहाँ तेरी नज़र और है कहाँ तेरा निशाना,,,*
*आत्मकुंठा से निकल कर इस समय का सामना कर*
*शेर की औलाद है तू कायरों सा काम न कर,,*
*नोंक है काटों की तीख़ी फ़िर भी चलना है तुझे*
*है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,,*

*झील की गहराइयों को रेत से अब पाटता चल*
*जम गया है ख़ून जिनका,,उनको ऊष्मा बाँटता चल*
*चढ़ते सूरज के समय में सो रहा हो जो पथिक*
*एक दो थप्पड़ लगाकर उसको भी तू डाँटता चल,,,*
*बीच कीचङ में कमल के जैसे फलना है तुझे*
*है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,,,,,*

*यार की यारी मिटेगी,,हर शमा बुझ जायेगा,,*
*जंग अपनी ख़ुद लड़ो न काम कोई आयेगा,,,*
*हार बैठे गर, मिटेगा नाम और निशान भी*
*डट गये मैदान में तो आसमां झुक जायेगा,,,,,,,,,*
*जाल है धोखे के इत उत,बच के चलना है तुझे*
*है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,,,*

*आग हो तो मेघ बन कर तू बरस जा जोर से*
*रेत बनकर सोख ले पानी को तू हर ओर से,,,,*
*भंग कर दे व्यूह तू शत्रु का हर एक शौर्य से,*
*शेर है तू डर न जाना गीदड़ों के शोर से,,,,,,,,,*
*सूर्य के उगने से पहले ही निकलना है तुझे*
*है अँधेरा हर तरफ़,,सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,*

*मरना तो निश्चित है उससे पहले थोड़ा काम करने*
*मौत पर हो जश्न तेरी इतना ऊँचा नाम करले,,*
*बीच रास्ते में अगर कमज़ोर हो जा हौसला,,*
*याद कर हनुमान को और राम जय श्री राम कर ले*
*क्रांति का तू नूर है हर पल उबलना है तुझे,,,*
*है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,*

                    *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
              *बाराबंकी,,9792016971*
         

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