क्यों भटकता.....?

,,, *क्यों भटकता?* ,,,,
🍁
*क्यों भटकता?*
हैं कई रास्ते,सही चुन
धैर्य से निज़ ख़्वाब तू बुन
बौखलाये नाग जैसे,,
सिर को अपने क्यों *पटकता?*
*क्यों भटकता?*
🍁
चल वहीं, जाना जहाँ है,
सोंच ले,मंज़िल कहाँ है?
रास्ते के बन्धनों में,
बंध के जाने क्यों *अटकता..?*
*क्यों भटकता?*
🍁
है दिखावे का ये मेला,
जान ले,तू है अकेला,,,,
फिर जली रस्सी,,को लेकर
पेड़ से तू क्यों *लटकता..?*
*क्यों भटकता?*
🍁
है समय,पहचान ख़ुद को,
चल,बना इंसान ख़ुद को,,,
व्यर्थ का आलाप लेकर,
कौन है ऐसे *मटकता?*
*क्यों भटकता?*
🍁
दूर तक जाना है तुझको,
हर प्रभा पाना है तुझको...
तो समय की बेड़ियों को
चल *झटकता....*
*क्यों भटकता?*
🍁
             *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
        *छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
               *9792016971*
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(हमारी यह रचना हमारे उन स्नेहपात्रों को समर्पित जो,,दुनिया जानने के चक्कर में वह सब भूल गये हैं जो वह जानते थे........)

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