तब बच्चे ने चलना सीखा.....
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
,,,,, *तब बच्चे ने चलना सीखा* ,,,,,,,,,
🍁🍂🍁
*बिन लिखे बहुत कुछ लिखा गया*
*यह वक्त बहुत कुछ सिखा गया,,,,*
*जो रूप दिखा न दिन में हमें,,*
*वह रूप अँधेरा दिखा गया,,,,,,*
*जब चली प्रलय की घोर घटा*
*तब दीपक ने जलना सीखा,,,,,,,,,,*
*गिर गिर के उठा ,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
*कब तलक़ निहारोगे सब को*
*अपना भी परिचय दो जग को*
*व्यक्तित्व निखारो ऐसा कि*
*मुँह दिखा सको अपने रब को,,,,,,,*
*जब जब ऊष्मा ने दंश किया*
*हिमखण्डों ने गलना सीखा,,,,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*रख संयम जीव अभावों में*
*क्यों बहका दुखद प्रभावों में,,,*
*आयेगा युग ख़ुशहाली का*
*सब मिलेगा अच्छे भावों में,,,,,,,,*
*तब तब सूरज की चमक बढ़ी*
*जब जब उसने जलना सीखा,,,,,,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*झुक कर के चलो*
*मिल कर के मिलो*
*जब ठिठुरे हवा सर्दियों से*
*बनकर के सुनहरी धूप खिलो*
*उगने का हुनर तो तभी मिला*
*जब तारों ने ढलना सीखा,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*सिद्धार्थ बदलते मौसम में*
*कुछ नये रंग बिखराना है,,,,*
*जाते जाते इस दुनिया को*
*कुछ ज्ञान रत्न दे जाना है,,,,,,,*
*जब त्याग भाव मन में आया*
*तब पौधों ने फलना सीखा,,,,,,,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने जलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
*9792016971*
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
,,,,, *तब बच्चे ने चलना सीखा* ,,,,,,,,,
🍁🍂🍁
*बिन लिखे बहुत कुछ लिखा गया*
*यह वक्त बहुत कुछ सिखा गया,,,,*
*जो रूप दिखा न दिन में हमें,,*
*वह रूप अँधेरा दिखा गया,,,,,,*
*जब चली प्रलय की घोर घटा*
*तब दीपक ने जलना सीखा,,,,,,,,,,*
*गिर गिर के उठा ,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
*कब तलक़ निहारोगे सब को*
*अपना भी परिचय दो जग को*
*व्यक्तित्व निखारो ऐसा कि*
*मुँह दिखा सको अपने रब को,,,,,,,*
*जब जब ऊष्मा ने दंश किया*
*हिमखण्डों ने गलना सीखा,,,,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*रख संयम जीव अभावों में*
*क्यों बहका दुखद प्रभावों में,,,*
*आयेगा युग ख़ुशहाली का*
*सब मिलेगा अच्छे भावों में,,,,,,,,*
*तब तब सूरज की चमक बढ़ी*
*जब जब उसने जलना सीखा,,,,,,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*झुक कर के चलो*
*मिल कर के मिलो*
*जब ठिठुरे हवा सर्दियों से*
*बनकर के सुनहरी धूप खिलो*
*उगने का हुनर तो तभी मिला*
*जब तारों ने ढलना सीखा,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*सिद्धार्थ बदलते मौसम में*
*कुछ नये रंग बिखराना है,,,,*
*जाते जाते इस दुनिया को*
*कुछ ज्ञान रत्न दे जाना है,,,,,,,*
*जब त्याग भाव मन में आया*
*तब पौधों ने फलना सीखा,,,,,,,,,*
*गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा*
*तब बच्चे ने जलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,*
🍁🍂🍁🍂🍁
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*
*9792016971*
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
Comments
Post a Comment