यह शुभप्रभात की बेला है...
,,,, *यह शुभप्रभात की बेला है* ,,,,,
*धरती के दोनों छोर मिले,,एक सेतु बना ऐसा सुंदर,,*
*धरती ,अम्बर तक जा पहुंची,,या धरती पर उतरा अम्बर,,*
*घनघोर,,अँधेरा,,भाग उठा सूरज ने मार धकेला है,,,*
*उठ शीश झुकाकर करो नमन, यह शुभ प्रभात की बेला है,,,,*
*अरुणिम प्रभात,,उदयाचल में चहुँओर अरुणिमा छायी है,,*
*जीवन दाता,रवि ने फिर से अपनी करुणा भिखराई है*
*सोने वाले सब जाग उठे,,वीराने में अब मेला है,,*
*उठ शीश झुकाकर नमन करो,यह शुभप्रभात की बेला है,,,*
*पशु जाग उठे, पक्षी जागे,तू अबतक बेबस सोया है,,*
*संघर्ष,समन्वय देख यहाँ,,क्यों व्यर्थ ख़्वाब में खोया है,,*
*नभ में दिनकर फिर चमक उठा,अब कोई नहीं अकेला है,,*
*उठ शीश झुकाकर नमन करो,,यह शुभप्रभात की बेला है,,*
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*धरती के दोनों छोर मिले,,एक सेतु बना ऐसा सुंदर,,*
*धरती ,अम्बर तक जा पहुंची,,या धरती पर उतरा अम्बर,,*
*घनघोर,,अँधेरा,,भाग उठा सूरज ने मार धकेला है,,,*
*उठ शीश झुकाकर करो नमन, यह शुभ प्रभात की बेला है,,,,*
*अरुणिम प्रभात,,उदयाचल में चहुँओर अरुणिमा छायी है,,*
*जीवन दाता,रवि ने फिर से अपनी करुणा भिखराई है*
*सोने वाले सब जाग उठे,,वीराने में अब मेला है,,*
*उठ शीश झुकाकर नमन करो,यह शुभप्रभात की बेला है,,,*
*पशु जाग उठे, पक्षी जागे,तू अबतक बेबस सोया है,,*
*संघर्ष,समन्वय देख यहाँ,,क्यों व्यर्थ ख़्वाब में खोया है,,*
*नभ में दिनकर फिर चमक उठा,अब कोई नहीं अकेला है,,*
*उठ शीश झुकाकर नमन करो,,यह शुभप्रभात की बेला है,,*
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
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