फिर दीप जले....

,,, *🕯फिर दीप जले🕯* ,,,,

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*बिजली चमकी,,बादल गरजे*
*तूफान उठा,,रिमझिम बरसे*
*घर भी टूटा,,, सिर भी फूटा*
*जैसे तैसे बीते अरसे,,,*
*फ़िर रब ने पकड़ाई ऊँगली*
*एक नये सृजन को हम निकले,,,*
*मिट गया तिमिर फ़िर मानस से*
*हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,,*
🕯🕯🌷
*मुश्किल का बवंडर आना है*
*पर हमें नहीं घबराना है,,,*
*कश्ती की तरह धारा को चीर*
*आगे को बढ़ते जाना है,,*
*जब चित्त नहाया पौरुष से*
*सब दर्द मिटे अगले पिछले,,*
*मिट गया तिमिर फिर मानस से*
*हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,*
🕯🕯🕯🌷
*थक थक के रुकेगी यह काया*
*पैरों को रोकेगी माया,,*
*रुकना मत,,पूरा करना है,,*
*वादा जो सबसे कर आया,,,,*
*कर्तव्य राह दिख गयी हमे*
*अब छोड़ दिये मैंने जुमले,,,,,*
*मिट गया तिमिर फिर मानस से*
*हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,,*
🕯🕯🕯🕯🌷
*कण से कण जोड़े जब रब ने*
*तब वृहत हिमालय खड़ा हुआ,,,*
*अंकुर,पत्ती,, शाखा निकली,,*
*इस तरह से पौधा बड़ा हुआ,,,*
*होगा विकास धीरे धीरे,,*
*यह मूलमंत्र लेकर निकले,,*
*मिट गया तिमिर फिर मानस से*
*हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,,,*
🕯🕯🕯🕯🕯🌷
*ऐ जीव! सृजन का स्वामी तू*
*क्यों हाथ बांधकर बैठा है,,,,,?*
*मिल जुल के लिख इतिहास नया*
*एक दूजे से क्यों ऐंठा है,,,,?*
*जब जब छोड़ा अलगाववाद*
*एकता के लिये जब मचले,,,,,*
*मिट गया तिमिर फिर मानस से*
*हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,*
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                *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
          *बाराबंकी,,9792016971*
     

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