हमको भी अब जीने दो.....
,,,,,, *हमको भी अब जीने दो* ,,,,,,,
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
*सिर के ऊपर एक छत दे दो*
*हाथों में एक रोटी दे दो,,,,,,*
*गर्मी के लिये पतली चादर*
*सर्दी के लिये मोटी दे दो,,,,,,,*
*मैं भी प्यासा हूँ सदियों से*
*हमको भी पानी पीने दो,,,,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,*
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
*भावों का हुआ अभाव बड़ा*
*सूखा मन के सागर में पड़ा,,,,,*
*सब उथल पुथल है जीवन में*
*ये है कैसा तूफान खड़ा,,,,,,,,,,*
*मिट्टी की महक में रहने दो*
*कब हमने कहा नगीने दो,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,*
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
*जीवन वीणा के तार तोड़*
*मत स्वर गंगा को ठहराओ,,,*
*मानवता की अनुभूति करो*
*कुछ दया धर्म भी अपनाओ,,,*
*सीं न सको यदि जख़्म हमारे*
*हमको ही सीं लेने दो,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,,,*
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
*मत शाम को मेरी सुबह करो*
*बस सूरज को तुम मत रोंको*
*यदि तपिश मिटा न पाओ तो*
*अग्नि में हमको मत झोंकों,,,,,,,,,*
*तुम हँसा नहीं सकते हमको तो*
*क़िस्मत पर हमको रोने दो,,,,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,,*
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*9792016971*
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*सिर के ऊपर एक छत दे दो*
*हाथों में एक रोटी दे दो,,,,,,*
*गर्मी के लिये पतली चादर*
*सर्दी के लिये मोटी दे दो,,,,,,,*
*मैं भी प्यासा हूँ सदियों से*
*हमको भी पानी पीने दो,,,,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,*
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*भावों का हुआ अभाव बड़ा*
*सूखा मन के सागर में पड़ा,,,,,*
*सब उथल पुथल है जीवन में*
*ये है कैसा तूफान खड़ा,,,,,,,,,,*
*मिट्टी की महक में रहने दो*
*कब हमने कहा नगीने दो,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,*
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*जीवन वीणा के तार तोड़*
*मत स्वर गंगा को ठहराओ,,,*
*मानवता की अनुभूति करो*
*कुछ दया धर्म भी अपनाओ,,,*
*सीं न सको यदि जख़्म हमारे*
*हमको ही सीं लेने दो,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,,,*
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*मत शाम को मेरी सुबह करो*
*बस सूरज को तुम मत रोंको*
*यदि तपिश मिटा न पाओ तो*
*अग्नि में हमको मत झोंकों,,,,,,,,,*
*तुम हँसा नहीं सकते हमको तो*
*क़िस्मत पर हमको रोने दो,,,,,,,*
*जीने दो,जीने दो*
*हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,,*
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*कवि सिद्धार्थ अर्जुन*
*9792016971*
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