तुम चलो मैं आता हूँ...
तुम चलो मैं आता हूँ..........
देख लूँ,,कोई कराहे राह के उस छोर पर,
नृत्य क्यों ठहरा अचानक,क्या है विपदा मोर पर,
क्यों यकायक मन विचल उठता है नभ के शोर पर,
रात भर जागूँ,,या थोड़ा काम छोड़ूँ भोर पर..
गुत्थियों की उलझनों में, मैं उलझता जाता हूँ,
तुम चलो मैं आता हूँ...................................
तन तो पावन कर चुका हूँ,मन अभी ना-पाक़ है,
है कहाँ गंगा या ज़मज़म,, मिल सके यह ताक है,
ढाल हूँ मैं चित्त मधुरिम,,पर कहाँ पर चाक है,
ढूंढता हूँ तुलसी दल मैं,,पर यहाँ बस आक है...
ख़ोज है ख़ुद की मुझे,,देखो कहाँ तक जाता हूँ,
तुम चलो मैं आता हूँ..................................
दिख रहे हैं चिन्ह कुछ,,पथ पर किसी के पैर के,
कुछ निशां अपनत्व के हैं,,कुछ निशां हैं बैर के,
कुछ बताते हैं फ़साने वीर जन की ख़ैर के,
कुछ दिखाते हैं निशां,,असफ़ल,सफ़ल एक सैर के,
आदि भी मिलता नहीं,,मैं,,अन्त भी न पाता हूँ,
तुम चलो मैं आता हूँ..................................
ख़ैर,कुछ कर्तव्य अपने हैं निभाने अब तलक़,
कर्म के स्वर्णिम महल कुछ हैं उठाने अब तलक़,
ज़िन्दगी के भेद हैं सबको बताने अब तलक़,
प्राणप्रिय कितने,,ह्रदय से हैं लगाने अब तलक़,
जा रहा हूँ,,सबको यह फ़रमान देकर आता हूँ..
तुम चलो मैं आता हूँ.................................
*सिद्धार्थ अर्जुन*
देख लूँ,,कोई कराहे राह के उस छोर पर,
नृत्य क्यों ठहरा अचानक,क्या है विपदा मोर पर,
क्यों यकायक मन विचल उठता है नभ के शोर पर,
रात भर जागूँ,,या थोड़ा काम छोड़ूँ भोर पर..
गुत्थियों की उलझनों में, मैं उलझता जाता हूँ,
तुम चलो मैं आता हूँ...................................
तन तो पावन कर चुका हूँ,मन अभी ना-पाक़ है,
है कहाँ गंगा या ज़मज़म,, मिल सके यह ताक है,
ढाल हूँ मैं चित्त मधुरिम,,पर कहाँ पर चाक है,
ढूंढता हूँ तुलसी दल मैं,,पर यहाँ बस आक है...
ख़ोज है ख़ुद की मुझे,,देखो कहाँ तक जाता हूँ,
तुम चलो मैं आता हूँ..................................
दिख रहे हैं चिन्ह कुछ,,पथ पर किसी के पैर के,
कुछ निशां अपनत्व के हैं,,कुछ निशां हैं बैर के,
कुछ बताते हैं फ़साने वीर जन की ख़ैर के,
कुछ दिखाते हैं निशां,,असफ़ल,सफ़ल एक सैर के,
आदि भी मिलता नहीं,,मैं,,अन्त भी न पाता हूँ,
तुम चलो मैं आता हूँ..................................
ख़ैर,कुछ कर्तव्य अपने हैं निभाने अब तलक़,
कर्म के स्वर्णिम महल कुछ हैं उठाने अब तलक़,
ज़िन्दगी के भेद हैं सबको बताने अब तलक़,
प्राणप्रिय कितने,,ह्रदय से हैं लगाने अब तलक़,
जा रहा हूँ,,सबको यह फ़रमान देकर आता हूँ..
तुम चलो मैं आता हूँ.................................
*सिद्धार्थ अर्जुन*
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