घर का बड़ा जो हूँ...

थका भी हूँ,हारा भी,
अकेला लड़ा जो हूँ...

जलन वाज़िब है,,
अकेले खड़ा जो हूँ..

डर उन्हें भी है,
ज़िद पर अड़ा जो हूँ...

वो अपनायें भी तो क्यों?
कच्चा घड़ा जो हूँ...

दाँव पर तो लगना ही था,
घर का बड़ा जो हूँ....

        कवि सिद्धार्थ अर्जुन

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