उन्हें है नींद चढ़ी ....
उन्हें है नींद चढ़ी धर्म,जाति, मज़हब की,
तुम्ही हो होश में,अब सब को जगाने को चलो..
नहीं हैं रूबरू सच के,है आँख पर पट्टी,
तुम्हे तो दिख रहा है,,सब को दिखाने को चलो..
कि ये फ़साद भी उनकी ही कोई साज़िश है,
चलो हर राज़ से पर्दे को हटाने को चलो.........
कहीं तो आग लगी होगी,,आज फिर यारों,
तुम्ही बचे हो,,चलो आग बुझाने को चलो........
कोई सड़क पे आज भी कराहता निकला,
बनो हमदर्द,,चलो,दर्द बंटाने को चलो......….
कहीं किसी को फिर से मुफ़लिसी ने मारा है,
चलो,,हर घर से गरीबी को भगाने को चलो....
बड़ा खारा है,,मगर काम का नहीं है ये,
ये सियासत का समुंदर है,,सुखाने को चलो...
वो मान बैठे हैं,,मुर्दा है देश का यौवन,,
अभी ज़िंदा हो,,उन्हें शक़्ल दिखाने को चलो..
तमाम ख़वाब सहादत के अभी बाक़ी हैं,
चलो उन ख़्वाब को ज़मीन पे लाने को चलो...
तुम्ही बे बोझ है सिद्धार्थ,,इस जमाने का,
चलो,,अब शाह की कुर्सी को हिलाने को चलो..
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
तुम्ही हो होश में,अब सब को जगाने को चलो..
नहीं हैं रूबरू सच के,है आँख पर पट्टी,
तुम्हे तो दिख रहा है,,सब को दिखाने को चलो..
कि ये फ़साद भी उनकी ही कोई साज़िश है,
चलो हर राज़ से पर्दे को हटाने को चलो.........
कहीं तो आग लगी होगी,,आज फिर यारों,
तुम्ही बचे हो,,चलो आग बुझाने को चलो........
कोई सड़क पे आज भी कराहता निकला,
बनो हमदर्द,,चलो,दर्द बंटाने को चलो......….
कहीं किसी को फिर से मुफ़लिसी ने मारा है,
चलो,,हर घर से गरीबी को भगाने को चलो....
बड़ा खारा है,,मगर काम का नहीं है ये,
ये सियासत का समुंदर है,,सुखाने को चलो...
वो मान बैठे हैं,,मुर्दा है देश का यौवन,,
अभी ज़िंदा हो,,उन्हें शक़्ल दिखाने को चलो..
तमाम ख़वाब सहादत के अभी बाक़ी हैं,
चलो उन ख़्वाब को ज़मीन पे लाने को चलो...
तुम्ही बे बोझ है सिद्धार्थ,,इस जमाने का,
चलो,,अब शाह की कुर्सी को हिलाने को चलो..
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
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