उसने चूड़ी खनकायी है,मध्यम-मध्यम...

कानों तक एक धुन आयी है,मध्यम-मध्यम
उसने चूड़ी खनकायी है,मध्यम-मध्यम...

धरती से अम्बर तक एक नूतनता छायी है,
देख चाँद को आज चाँदनी भी शर्मायी है,
छटा गुलाबी फिर छायी है,मध्यम-मध्यम,
उसने चूड़ी खनकायी है,मध्यम-मध्यम....

आज हवा मदहोश हुई कुछ बात निराली है,
गलियां महकी,शायद वो फिर आने वाली है
प्रेम बदरिया घिर आयी है,मध्यम-मध्यम,
उसने चूड़ी खनकायी है,मध्यम-मध्यम....

अभी न रोंको मुझे फिज़ाओ, हमको जाना है,
एकाकी है मेरी दिलरुबा,साथ निभाना है,
लाल चुनरिया लहरायी है,मध्यम-मध्यम,
उसने चूड़ी खनकायी है,मध्यम-मध्यम......

धड़कन में मैं उसे बसा लूँ पलकों में रख लूँ,
वो मुझको चख ले ,थोड़ा सा,मैं उसको चख लूँ,
देख मिलन की ऋतु आयी है,मध्यम-मध्यम,
उसने चूड़ी खनकायी है,मध्यम-मध्यम........

                कवि सिद्धार्थ अर्जुन

    

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