मंदिर-मस्ज़िद

,,,,, मंदिर-मस्ज़िद ,,,,

सात रंग में रंगी,
एक ईमारत,
कह उठी दूसरी से,
क्या?कुछ अलग-अलग लिखा है,
अपनी दीवारों पर,
मैंने तो नहीं कहा कि
लड़ बैठो,आपस में.....
शायद तुमने भी नहीं
फ़िर कौन घोल देता है ज़हर
पाक़ नुमाइंदों के बीच
कौन बिखेर देता है काँटे
जो लाल कर देते हैं अपना आँगन
आने वालों के लहू से
बोल उठी दूसरी,
बहना!मुझे भी ग्लानि है
अफ़सोस है,बच्चों की कुबुद्धि पर
नहीं समझते,वो कि
बने हैं हम एक दूसरे के लिये
एक ही मिट्टी-पानी से
शोर कर दो,
सभी दिशाओं में...
बोल दो..
कम करें दूरियाँ,हमारे बीच की
बजा दें घण्टी, अज़ान शुरू कर दें
भोर की आरती, अज़ान के बाद
मिलना चाहते हैं गले
मंदिर-मस्ज़िद................

                           कवी सिद्धार्थ अर्जुन

Comments

Popular posts from this blog

महल बनाओ पानी पर....

सुनो ग़रीब हूँ.......

ख़ूबसूरती का एहसास..और दिलजलों की प्यास