एक दिन लड़ पड़े,क़ुदरत और हम...
,,,,,,, एक दिन लड़ पड़े ,,,,
एक दिन लड़ पड़े
क़ुदरत और हम
आख़िर झुके कौन?
न वह कम न हम कम..
उड़ा दिया छप्पर,
कहा, छत नहीं दूँगी
हमने कहा,
आसमाँ की छाया में सो लूँगी..
चला के आँधी बोली,
चिराग़ जला तो जानू...
हमने कहा,
रौशन है आफ़ताब,
उसे बुझा तो मानूँ.........
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
एक दिन लड़ पड़े
क़ुदरत और हम
आख़िर झुके कौन?
न वह कम न हम कम..
उड़ा दिया छप्पर,
कहा, छत नहीं दूँगी
हमने कहा,
आसमाँ की छाया में सो लूँगी..
चला के आँधी बोली,
चिराग़ जला तो जानू...
हमने कहा,
रौशन है आफ़ताब,
उसे बुझा तो मानूँ.........
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
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