सपने मत तोडना कभी माँ बाप के....

*..सपने मत तोड़ना कभी माँ-बाप के..*

अपने ख़्वाबों की दुनिया सँवारो मग़र,
बन न जाना तू भागी किसी पाप के,,,,,,,
तू है जो कुछ भी,,माँ-बाप का है करम
सपने मत तोड़ना कभी माँ-बाप के..........

याद रखना तू बचपन का हर फ़लसफ़ा,,
माता भूखी रही,सोंचों,कितनी दफ़ा,,
प्रेम में इश्क़ में पड़ के ओ रहगुज़र,
भूल मत जाना माँ-बाप की तुम वफ़ा,
हंस के हंसना मग़र याद रखना सदा,
ख़ुश न होना कभी घर का सुख ताप के,
सपने मत तोडना,,कभी माँ-बाप के..........

तू जवां है,हैं उनके बुढ़ापे के दिन,
बोल कैसे जियेंगे वो अब तेरे बिन,
बूढ़ी काया का बनना सहारा सदा,
आयेंगे न कभी फ़िर कहीं दुःख के दिन,
उनकी ममता की समता को समझोगे तब,
सामने खेलेंगे,,बच्चे जब आपके,
सपने मत तोड़ना,,,,कभी माँ-बाप के...........

खो दिया गर इन्हें विश्वबाजार में,
ढूंढकर भी न पाओगे संसार में,
जो सुकूँ मम्मी पापा के दामन में हैं,
न मिलेगा किसी और के प्यार में,
ये लुटाते हैं दौलत को दिल खोलकर,
प्यार करते नहीं हैं कभी माप के,
सपने मत तोड़ना,, कभी माँ-बाप के..........

                     सिद्धार्थ अर्जुन

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