यह व्यर्थ तीर..
फ़क़त सितार ,उठाने से,बज नहीं सकता,
जरा सा उंगलियाँ चलाके राग उपजाओ,
फ़क़त दलील किसे श्रेष्ठ कर सकी हैं यहाँ..?
हो श्रेष्ठ गर तो अपनी श्रेष्ठता को दिखलाओ..
सवूर है नहीं कि बात कैसे करते हैं,
हो कैसे अंत व शुरुवात कैसे करते हैं,
उठा के ऊँगली किसी को भी लक्ष्य क्या करना,
हो होशियार तो अपना स्वरूप दिखलाओ......
ये चन्द शब्द के अभिमान में न इतराओ,
हूँ मैं अनंत मुझे आप यूँ न भरमाओ,,
किसी मनीषी से थोड़ा बहुत सलीका लो,
पुनः यहाँ वहाँ सबनम की बूंद छ्लकाओ...
इसे अभिमान कहो,तो,सुनो,,अभिमानी हूँ,
किसी फ़कीर की दुआ हूँ,,रातरानी हूँ,
मेरा मुकाबला करना तुम्हारे बस का नहीं,,
ये व्यर्थ तीर कहीं और जाके बरसाओ......
*सिद्धार्थ अर्जुन*
जरा सा उंगलियाँ चलाके राग उपजाओ,
फ़क़त दलील किसे श्रेष्ठ कर सकी हैं यहाँ..?
हो श्रेष्ठ गर तो अपनी श्रेष्ठता को दिखलाओ..
सवूर है नहीं कि बात कैसे करते हैं,
हो कैसे अंत व शुरुवात कैसे करते हैं,
उठा के ऊँगली किसी को भी लक्ष्य क्या करना,
हो होशियार तो अपना स्वरूप दिखलाओ......
ये चन्द शब्द के अभिमान में न इतराओ,
हूँ मैं अनंत मुझे आप यूँ न भरमाओ,,
किसी मनीषी से थोड़ा बहुत सलीका लो,
पुनः यहाँ वहाँ सबनम की बूंद छ्लकाओ...
इसे अभिमान कहो,तो,सुनो,,अभिमानी हूँ,
किसी फ़कीर की दुआ हूँ,,रातरानी हूँ,
मेरा मुकाबला करना तुम्हारे बस का नहीं,,
ये व्यर्थ तीर कहीं और जाके बरसाओ......
*सिद्धार्थ अर्जुन*
Bahut hi sunder kavita
ReplyDeleteNice Line
ReplyDeleteSidharth bhaai aap arjun yoon hi nhi h ,,
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