जानते हो दर्द कितना है....

जानते हो दर्द कितना है धधकते घाव में,
फिर भी क्यों काँटा चुभोते हो किसी के पाँव में....

गर चली रिश्तों के पौधों पर,कुल्हाड़ी जीभ की,
कैसे बैठोगे बताओ,,तुम,,सुकूँ से छाँव में.......

बैठकर तुमको भी जाना है नदी के पार तक,
फिर भला क्यों छेद करते जा रहे हो नाव में......

जीत लो दुनिया,जमाने को झुका लो तुम मग़र,
हार ही जाओगे एक दिन ज़िन्दगी के दाँव में.....

पढ़ने वालों! सुनने वालों! दो वचन 'सिद्धार्थ' को,
अब नहीं बाँटोगे नफ़रत तुम शहर या गाँव में......

                                   सिद्धार्थ अर्जुन

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