कहीं भगवान न बिक जाये इन बाजारों में...

धर्म का कैसा है,,व्यापार इन बाज़ारों में...
डर है भगवान न बिक जाये इन बाजारों में,

बाप पर बेटे की चलती यहाँ हुक़ूमत है,
डर है सम्मान न बिक जाये इन बाजारों में...

हर तरफ़ स्वार्थ है,करुणा दया की बात नहीं,
डर हैं कि प्यार न बिक जाये इन बाजारों में....

जाति है,धर्म है,मज़हब है,है इंसान कहाँ,
डर है इंसान न बिक जाये इन बाजारों में....

दूध का कर्ज़ चुकाने की बात क्या"अर्जुन"
डर है ईमान न बिक जाये इन बाजारों में......

                         सिद्धार्थ अर्जुन

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