कोई पास से दूर जाने लगा है...

कोई हमसे छिपने-छिपाने लगा है,
कोई पास से दूर जाने लगा है.....

शाये में जिसके थे अब तक उजाले,
वही आज दीपक बुझाने लगा है.....

जो पग चिन्ह भी मेरे पढ़ता था रुककर,
ख़तों को हवा में उड़ाने लगा है......

मिलाकर कर के आँखे,जो दिल में उतरता,
वही आज नज़रें,बचाने लगा है.......

ओ सिद्धार्थ!देखो सिला दिललगी का,
मोहब्बत को झूठा बताने लगा है.......

कोई पास से दूर जाने लगा है,
कोई हमसे छिपने-छिपाने लगा है....

                       सिद्धार्थ अर्जुन

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