ऐ दोस्त.......

,,,,,,,,, *ऐ दोस्त* ,,,,,,,,,

*ऐ दोस्त!* जरा खिड़की खोलो,
देखो मैंने कुछ भेजा है,,,,,,,,,,
मीठी सी हवा में मैंने देखो,
ढेरों प्यार सहेजा है,,,,,,,,,,,,,,

उठ आँख खोलकर देख जरा,
ये दिन कितना चढ़ आया है,
तू देर तलक़ सोता न रहे,
मैंने सूरज भिजवाया है,,,,,,,,,,

*ऐ दोस्त!* गली के गमले में,
एक नयी कली मुस्कायी है,
गालों से लगा,चुम्बन कर ले,
तेरे ख़ातिर भिजवायी है,,,,,,,,,

*ऐ दोस्त!* रोज मैं गुलशन में,
भौंरा बनकर मड़राऊँगा,,
तू आना कलियाँ चुनने को,
मैं सुंदर गीत सुनाऊँगा,,,,,,,,,,

*ऐ दोस्त!* हमेशा ख़ुश रहना,
फिर किसी जन्म में आऊँगा,
आइना देख लेना तब तक,
मैं उसमें ही दिख जाऊँगा,,,,,,,

अच्छा ,अब देख, गदेली को,
कुछ नयी लकीरें आयी हैं,,,
मैंने अपनी सारी खुशियाँ,
तेरे हिस्से लिखवायी हैं,,,,,,,,,

अब चलूँ,,जरा सा ,हंस दे तू,,
कुछ रश्में और उठाना है,
तन्हा,,तन्हा है क़ब्र मेरी,,
उसका भी साथ निभाना है,,,,,,,

                    कवि सिद्धार्थ *अर्जुन*

(तू रहे जगमग..........)

Comments

Popular posts from this blog

महल बनाओ पानी पर....

सुनो ग़रीब हूँ.......

ख़ूबसूरती का एहसास..और दिलजलों की प्यास