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Showing posts from February, 2019

भारत को पुनः महान करो.....

🎠🎠🎠🎠🎠🎠🎠 ,,,,,,,,,, *भारत को पुनः महान करो* ,,,,,,,,,, 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *कुछ पृष्ठ अभी तक भरे नहीं* *कुछ कथ्य भी अब तक बाक़ी हैं,,,,* *कुछ मंथन की अभिलाषा है* *कुछ तथ्य अभी तक बाक़ी हैं,,,,* *अपने जीवन के सार तत्व का* *ख़ुद ही अनुसन्धान करो,,,,,,,,,,* *भारत पुनः महान करो* *भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *जिस ओर नज़ाकत नहीं रही* *उस ओर नज़र को दौड़ाओ,,,,,* *पतझड़ कहकर मत शांत रहो* *उपवन में फिर सावन लाओ,,,,* *मानवता की प्यासी धरती* *आओ फिर कोई निदान करो,,,,,,,,,,,,,* *भारत पुनः महान करो* *भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *अधरों पर हो मुस्कान सदा* *वाणी में ज्ञान की गंगा हो,,,,,* *हो तेज़ लालिमा माथे पर* *तन निर्मल अरु मन चंगा हो,,,,,,* *सदाचरण के गहने पहनों* *प्रेम में नित स्नान करो,,,* *भारत पुनः महान करो,,,,,* *भारत को पुनः महान करो,,,,,,,,,,,,,,* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *सदियों की श्रृंखला रही* *तुम उसमे नयी कड़ी जोड़ो* *जिस ओर है पथ परमारथ का* *उस दिशा में अपने पग मोड़ो,,,,,,* *हो सारी दुनिया नतम...

हमको भी अब जीने दो.....

,,,,,, *हमको भी अब जीने दो* ,,,,,,, ⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫ *सिर के ऊपर एक छत दे दो* *हाथों में एक रोटी दे दो,,,,,,* *गर्मी के लिये पतली चादर* *सर्दी के लिये मोटी दे दो,,,,,,,* *मैं भी प्यासा हूँ सदियों से* *हमको भी पानी पीने दो,,,,,,,* *जीने दो,जीने दो* *हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,* ⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫ *भावों का हुआ अभाव बड़ा* *सूखा मन के सागर में पड़ा,,,,,* *सब उथल पुथल है जीवन में* *ये है कैसा तूफान खड़ा,,,,,,,,,,* *मिट्टी की महक में रहने दो* *कब हमने कहा नगीने दो,,,,* *जीने दो,जीने दो* *हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,* ⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫ *जीवन वीणा के तार तोड़* *मत स्वर गंगा को ठहराओ,,,* *मानवता की अनुभूति करो* *कुछ दया धर्म भी अपनाओ,,,* *सीं न सको यदि जख़्म हमारे* *हमको ही सीं लेने दो,,,,* *जीने दो,जीने दो* *हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,,,* ⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫ *मत शाम को मेरी सुबह करो* *बस सूरज को तुम मत रोंको* *यदि तपिश मिटा न पाओ तो* *अग्नि में हमको मत झोंकों,,,,,,,,,* *तुम हँसा नहीं सकते हमको तो* *क़िस्मत पर हमको रोने दो,,,,,,,* *जीने दो,जीने दो* *हमको भी अब जीने दो,,,,,,,,,,,,* ⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫...

राष्ट्रवाद की भाषा है.......

,,,, *राष्ट्रवाद की भाषा है,,,,* ,,, 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *राष्ट्र पे जीना राष्ट्र पे मरना* *जिसकी यह अभिलाषा है,,,* *राष्ट्र के हित सर्वस्व लुटाना* *जिसके मन की आशा है,,,,,* *राष्ट्र की धारा में बहने को* *जो जन पल पल प्यासा है,,,,* *उस के कर्मो की ब्याख्या ही* *राष्ट्रवाद की भाषा है,,,,,,,,,,,,,* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *उठा सके जो गिरे हुए को* *वही राष्ट्र का साधक है,,,,,,* *स्वार्थ साधना,,मतलब यारी* *राष्ट्र प्रगति में बाधक है,,,,,,,* *कदम से कदम मिलाकर चलने की* *जिसकी अभिलाषा है,,,,,,,,,,* *उसके कर्मो की ब्याख्या ही* *राष्ट्रवाद की भाषा है,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *वेद संग वेदना पढ़े जो* *चेतन मन चेतना पढ़े जो,,,,* *मुरझाये चेहरों की ख़ुशी को* *नये नये आयाम गढ़े जो,,,* *परमारथ ही जिसके ख़ातिर* *जीवन की परिभाषा है,,,* *उसके कर्मों की ब्याख्या ही* *राष्ट्रवाद की भाषा है,,,,,,,,,,,,,* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *रग रग में ईमान बसाना* *सबको पोषित करते जाना* *अंदर बाहर कहीं भी हो पर* *देश भक्ति का ध्वज़ फहराना,,,,* *देश के हित कुछ कर जाने की* *जिसकी विकट पिपासा है* *उसके कर्...

ढूंढ ढूंढ कर चलो बिखारी को अनाज दें...

🌲🌲🌲🌲🌲🌲 ,, *ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें* ,, 🍁🍁🍁🍁 *छोड़ दो दिखावटें मिलावटें भी छोड़ दो* *ऊंच नीच के तमाम बन्धनों को तोड़ दो* *त्याग दो मनुष्यता को जो भी खोखला करे* *पाप से भरे सभी घड़ों को आज फोड़ दो,,,* *मिल के धर्म कर्म को आज फिर आवाज दें,,,* *ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,* 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 *स्वर्ग जैसी भूमि पर ये फैली कैसे भुखमरी* *हर तरफ़ तनाव की वृहत बरात क्यों खड़ी?* *हमको जान देने वाला बाप परेशान क्यों?* *दूध पिया जिसका वही माँ है आज अधमरी,,* *ज़िन्दगी की जंग में बिगुल स्वरूप साज़ दें,* *ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,,,* 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 *अपने पूर्वजों की तुम कहानी नहीं भूलना* *छोड़ कर गये जो वो निशानी नहीं भूलना,,* *हर तरफ़ अमन सुकून के लिये जो मर गये,,,* *भाई बहन तुम वो कुर्बानी नहीं भूलना,,,,,,,,,,,* *गालियों को छोड़ प्रेम से भरे अल्फाज़ दें* *ढूढ़ ढूढ़ कर चलो भिखारी को अनाज दें,,,,,,* 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 *मंदिरों में देवताओं का पुनः निवास हो* *मस्जिदों में फ़िर से प्रेम भाव एहसास हो* *नीचता से पूर्ण राजनीति छोड़कर पुनः* *हम सभी का भाईच...

हम क़िरदार निभाते जाना....

🌸🌸🌸🌸🌸🌸 ,,,, *हर किरदार निभाते जाना* ,,,,,, 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 *तुझ पर सबके कर्ज़ बहुत हैं,,* *अब तक बाक़ी फ़र्ज बहुत हैं,,,* *एक कला में नहीं है जीवन* *जीने की भी तर्ज़ बहुत हैं,,,,,,,,* *रह न जाये कोई वंचित* *सब पर हाथ फिराते जाना,,,* *जीवन में क़िरदार बहुत हैं* *हर क़िरदार निभाते जाना,,,,,,,,* 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 *कहीं है बेटा कहीं है भाई* *कहीं यार की यारी है,,,,,,,* *भांति भांति की एक दूजे से* *सबकी रिश्तेदारी है,,,* *हर रिश्ते को पाल पोष कर* *रिश्तेदारी अमर बनाना,,,* *जीवन में क़िरदार बहुत हैं* *हर क़िरदार निभाते जाना,,,,,,,,* 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 *अपने बारे में मत सोंचों* *अपनों का भी ख़्याल करो,,,,* *नाज़ है तुझ पर जिन जिन को* *उन सबका ऊँचा भाल करो,,,* *बनना पड़े तो ज़ोकर बनकर* *सबको ख़ूब हँसाते जाना,,* *जीवन में क़िरदार बहुत हैं* *हर क़िरदार निभाते जाना,,,,,,,,* 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 *अगर अमावस आज हुई* *तो पूनम रात भी होनी है,,,* *सूखा है यदि पड़ा आज़* *तो कल बरसात भी होनी है,,,,,* *कैसा भी हो मौसम तुम* *अपना अस्तित्व बचाते जाना,,* *जीवन में क़िरदार बहुत हैं* *हर क़िरदार न...

महल बनाओ पानी पर....

🌷🌷🌷🌷 ,,,,,, *महल बनाओ पानी पर* ,,,,,, 🌷 *पुष्पित हो हर डाल तुम्हारी* *महक उठे जीवन फुलवारी* *अंग अंग नव रंग सजें और* *मुट्ठी में हो काल तुम्हारी,,,,* *कर्म करो नित धर्म भाव से* *रखो नियंत्रण वाणी पर,,,,,,* *अपना एक एक ख़्वाब सजाकर* *महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷🌷 *जीत हार का एक भाव से* *खेल जिन्होंने खेला है,,,,,,,* *निश्चित है भविष्य में उनके* *नाम पे लगता मेला है,,,,,,,,,,,* *नये शोध के पत्र लिखो अब* *बीती सभी कहानी पर,,* *अपना एक एक ख़्वाब सजाकर* *महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷🌷🌷 *जुड़कर रहो धरातल से* *ऊँचे मकान को मत देखो* *रत्न मिलेंगे मिट्टी में ही* *आसमान को मत देखो,,,,,,,* *फूंक फूंक कर कदम बढ़ा और* *काबू हो मनमानी पर,,* *अपना एक ख़्वाब सजाकर* *महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷🌷🌷🌷 *लड़ना झगड़ना और बिगड़ना* *व्यर्थ है तुम इनमें न पड़ना,,* *जो तेरे अनुकूल न हो तुम* *उस घोड़े पर कभी न चढ़ना,,,,* *ऐ नादानों दुनिया जानो* *शर्म करो नादानी पर,,,,,,,,,,,,* *अपना एक एक ख़्वाब सजाकर* *महल बनाओ पानी पर,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷...

पानी में एक पत्थर मारो.....

🌧🌧🌧🌧🌧🌧🌧🌧 ,,,,, *पानी में एक पत्थर मारो* ,,,,, 💧💧 *एक रात को चंदा प्यारा* *कहने लगा अँधेरे से* *मैंने उसकी बातें सुन ली* *कान लगाकर धीरे से,,* *बोला बंद भुजायें खोलो* *ख़ुद अपनी तक़दीर सँवारो,,,* *लहरों पर लहरे आयेंगी* *पानी में एक पत्थर मारो,,,,,,,,*🌦 💧💧💧 *दुःख पर्दा है उसके पीछे* *छुपा हुआ है सुख देखो,,,,,* *रास्ता न मालूम हो तो तुम* *तेज़ हवा का रुख़ देखो,,,,,,,* *ख़ुद भी पार निकल जाओगे* *डूब रहा जो उसे उबारो,,,,,,,,,* *लहरों पर लहरे आयेंगी* *पानी में एक पत्थर मारो,,,,,,,,,*🌦 💧💧💧💧💧 *उतना ही आराम करो* *जितने से सदा आराम रहे,,,* *कम से कम कुछ ऐसा कर दो* *मरकर जिन्दा नाम रहे,,,* *अपने संग में अपनों को भी* *भव सागर से पार उतारो* *लहरों पर लहरें आयेंगी* *पानी में एक पत्थर मारो,,,,,,,,,*🌦 💧💧💧💧💧💧 *वीर करें विश्राम जगत में* *ऐसा तो उपलक्ष्य नहीं,,,,,,* *रास्ते भले बदल लो लेकिन* *कभी बदलना लक्ष्य नहीं,,* *जीत तुम्हारी निश्चित है तुम* *दिल से भय को अभी निकालो,,* *लहरों पर लहरे आयेंगी* *पानी में एक पत्थर मारो,,,,,,,,,,,*🌦 💧💧💧💧💧...
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂 ,,,,, *तब बच्चे ने चलना सीखा* ,,,,,,,,, 🍁🍂🍁 *बिन लिखे बहुत कुछ लिखा गया* *यह वक्त बहुत कुछ सिखा गया,,,,* *जो रूप दिखा न दिन में हमें,,* *वह रूप अँधेरा दिखा गया,,,,,,* *जब चली प्रलय की घोर घटा* *तब दीपक ने जलना सीखा,,,,,,,,,,* *गिर गिर के उठा ,उठ उठ के गिरा* *तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁🍂🍁🍂🍁🍂 *कब तलक़ निहारोगे सब को* *अपना भी परिचय दो जग को* *व्यक्तित्व निखारो ऐसा कि* *मुँह दिखा सको अपने रब को,,,,,,,* *जब जब ऊष्मा ने दंश किया* *हिमखण्डों ने गलना सीखा,,,,,,* *गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा* *तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁🍂🍁🍂🍁 *रख संयम जीव अभावों में* *क्यों बहका दुखद प्रभावों में,,,* *आयेगा युग ख़ुशहाली का* *सब मिलेगा अच्छे भावों में,,,,,,,,* *तब तब सूरज की चमक बढ़ी* *जब जब उसने जलना सीखा,,,,,,,,* *गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा* *तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁🍂🍁🍂🍁 *झुक कर के चलो* *मिल कर के मिलो* *जब ठिठुरे हवा सर्दियों से* *बनकर के सुनहरी धूप खिलो* *उगने का हुनर तो तभी मिला* *जब तारों ने...

तब बच्चे ने चलना सीखा.....

🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂 ,,,,, *तब बच्चे ने चलना सीखा* ,,,,,,,,, 🍁🍂🍁 *बिन लिखे बहुत कुछ लिखा गया* *यह वक्त बहुत कुछ सिखा गया,,,,* *जो रूप दिखा न दिन में हमें,,* *वह रूप अँधेरा दिखा गया,,,,,,* *जब चली प्रलय की घोर घटा* *तब दीपक ने जलना सीखा,,,,,,,,,,* *गिर गिर के उठा ,उठ उठ के गिरा* *तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁🍂🍁🍂🍁🍂 *कब तलक़ निहारोगे सब को* *अपना भी परिचय दो जग को* *व्यक्तित्व निखारो ऐसा कि* *मुँह दिखा सको अपने रब को,,,,,,,* *जब जब ऊष्मा ने दंश किया* *हिमखण्डों ने गलना सीखा,,,,,,* *गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा* *तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁🍂🍁🍂🍁 *रख संयम जीव अभावों में* *क्यों बहका दुखद प्रभावों में,,,* *आयेगा युग ख़ुशहाली का* *सब मिलेगा अच्छे भावों में,,,,,,,,* *तब तब सूरज की चमक बढ़ी* *जब जब उसने जलना सीखा,,,,,,,,* *गिर गिर के उठा,उठ उठ के गिरा* *तब बच्चे ने चलना सीखा,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁🍂🍁🍂🍁 *झुक कर के चलो* *मिल कर के मिलो* *जब ठिठुरे हवा सर्दियों से* *बनकर के सुनहरी धूप खिलो* *उगने का हुनर तो तभी मिला* *जब तारों ने...

पक्का वाला वादा है....

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 ,,,, *पक्का वाला वादा है* ,,,,,, 🌷 *ख़ूब सभी से प्यार करेंगे* *सब पर जान निशार करेंगे,,,* *न झगड़ा न कोई लड़ाई* *प्रेम भरा व्यवहार करेंगे,,,,,* *सब को रिझाऊँगा सबको हँसाऊँगा* *यह ही मेरा इरादा है,,,* *जाते लम्हे तुझसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺 *भूल के सारे बैर पुराने* *अब हैं रिश्ते सभी निभाने,,,* *जिनको भी हमने ठुकराया* *चलो चलें उनको अपनाने,,,,,,* *कल तक क्या था पता नहीं* *अब जीवन सीधा साधा है,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *ख़ता हुई जो माफ़ करो जी* *दिल की मटकी साफ़ करो जी* *इच्छा हो तो सज़ा भी दे दो* *मग़र सज़ा को हॉफ करो जी,,,* *अबसे हम हैं कृष्ण कन्हैया* *सब लोग हमारी राधा हैं,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *समय है रिश्ते मधुर बना लो* *जो रूठा है उसे मना लो* *ईर्ष्या द्वेष जलन में क्या है?* *रास्ता यारी का अपना लो,,,,,* *हम सबके हैं सब हैं हमारे* *सबका यही इरादा है,,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,...

पक्का वाला वादा है....

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 ,,,, *पक्का वाला वादा है* ,,,,,, 🌷 *ख़ूब सभी से प्यार करेंगे* *सब पर जान निशार करेंगे,,,* *न झगड़ा न कोई लड़ाई* *प्रेम भरा व्यवहार करेंगे,,,,,* *सब को रिझाऊँगा सबको हँसाऊँगा* *यह ही मेरा इरादा है,,,* *जाते लम्हे तुझसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺 *भूल के सारे बैर पुराने* *अब हैं रिश्ते सभी निभाने,,,* *जिनको भी हमने ठुकराया* *चलो चलें उनको अपनाने,,,,,,* *कल तक क्या था पता नहीं* *अब जीवन सीधा साधा है,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *ख़ता हुई जो माफ़ करो जी* *दिल की मटकी साफ़ करो जी* *इच्छा हो तो सज़ा भी दे दो* *मग़र सज़ा को हॉफ करो जी,,,* *अबसे हम हैं कृष्ण कन्हैया* *सब लोग हमारी राधा हैं,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *समय है रिश्ते मधुर बना लो* *जो रूठा है उसे मना लो* *ईर्ष्या द्वेष जलन में क्या है?* *रास्ता यारी का अपना लो,,,,,* *हम सबके हैं सब हैं हमारे* *सबका यही इरादा है,,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,...

पक्का वाला वादा है....

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 ,,,, *पक्का वाला वादा है* ,,,,,, 🌷 *ख़ूब सभी से प्यार करेंगे* *सब पर जान निशार करेंगे,,,* *न झगड़ा न कोई लड़ाई* *प्रेम भरा व्यवहार करेंगे,,,,,* *सब को रिझाऊँगा सबको हँसाऊँगा* *यह ही मेरा इरादा है,,,* *जाते लम्हे तुझसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺 *भूल के सारे बैर पुराने* *अब हैं रिश्ते सभी निभाने,,,* *जिनको भी हमने ठुकराया* *चलो चलें उनको अपनाने,,,,,,* *कल तक क्या था पता नहीं* *अब जीवन सीधा साधा है,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *ख़ता हुई जो माफ़ करो जी* *दिल की मटकी साफ़ करो जी* *इच्छा हो तो सज़ा भी दे दो* *मग़र सज़ा को हॉफ करो जी,,,* *अबसे हम हैं कृष्ण कन्हैया* *सब लोग हमारी राधा हैं,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *समय है रिश्ते मधुर बना लो* *जो रूठा है उसे मना लो* *ईर्ष्या द्वेष जलन में क्या है?* *रास्ता यारी का अपना लो,,,,,* *हम सबके हैं सब हैं हमारे* *सबका यही इरादा है,,,* *जाते लम्हे तुमसे मेरा* *पक्का वाला वादा है,,,,,,,,,,,,...

दीपक कौन जलायेगा.......?

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂 ,,,, *दीपक कौन जलायेगा* ,,,,, 🍂 *परिवर्तन की माँग कर रहा* *मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा,,,* *पूँछ रहा ईमान धर्म ये* *भाईचारा क्यों हारा,,,,,,,,,* *तुम ही यदि पथभ्रष्ट हुये तो* *रास्ता कौन दिखायेगा,,,?* *युग के वाहक अरे युवाओं* *दीपक कौन जलायेगा,,,,,,,,,,,* 🌾 🍂🍂🍂🍂 *तुम ही हो आधार देश का* *तुमसे ही पहचान बनी,,,,,,* *तुम्ही पे हम अभिमान कर रहे* *तुम्ही से मेरी शान बनी,,,,,,,,,,,,,,* *तुम्ही लूटने लगे जो इज्ज़त* *तो फ़िर कौन बचायेगा,,,,,,,,,?* *युग के वाहक अरे युवाओं* *दीपक कौन जलायेगा,,,,,,,,,,,,?* 🌾 🍂🍂🍂🍂🍂🍂 *बच्चों का भविष्य तुमसे है,,,* *और बूढ़ों का आज़ हो तुम* *विकलांगों के अंग तुम्ही* *और गूंगों की आवाज़ हो तुम* *दर्पण हो यदि टूट गये तो* *चेहरा कौन दिखायेगा,,,,,,,,,?* *युग के वाहक अरे युवाओं* *दीपक कौन जलायेगा,,,,,,,,,,,?* 🌾 🍂🍂 *पगडंडी के तुम निशान* *तुम ही नेता आगामी हो,,,,* *तुम ही पालनहार सभी के* *तुम ही सबके स्वामी हो,,,,,,* *अगर रुलाने लगे तुम्ही तो* *बोलो कौन हंसायेगा,,,,,,,,,,?* *युग के वाहक अरे युवाओं* *दीपक कौन जलायेग...

इतिहास गवाही दे देगा......

🌲🌲🌲🌲🌲🌲 ,,,, *इतिहास गवाही दे देगा* ,,,,,,, 🌲 *हांथों से थपकी दे देकर* *कच्ची मिट्टी के घड़े गढ़ो,,,,,* *कदमों से ताल दो धरती को* *आगे की ओर बिन रुके बढ़ो,,,* *ख़ुद पथ तुझको ओ राहगीर* *एक दिन हमराही दे देगा,,,,,* *होगा हिसाब जब कर्मों का* *इतिहास गवाही दे देगा,,,,,,,,,,,,,*👌 🌲🌲 *कुछ न कुछ अंकित कर डालो* *कोई पन्ना खाली न रहे,,,* *कुछ ऐसे बिखराओ ख़ुशबू* *बिन हँसे तेरा माली न रहे,,,,* *कुछ शब्द तेरे इस जीवन को* *'शब्दों का सिपाही' दे देगा,,,,,,,* *होगा हिसाब जब कर्मों का* *इतिहास गवाही दे देगा,,,,,,,,,,,,,,,,*👌 🌲🌲🌲 *तू रहे न रहे दुनिया में* *लेकिन तेरी पहचान रहे,,,,,* *आने वाली हर पीढ़ी को* *तुझ पर सदैव अभिमान रहे,,,,,,* *लिखने का तू साहस तो कर* *कोई क़लम व स्याही दे देगा,,* *होगा हिसाब जब कर्मों का* *इतिहास गवाही दे देगा,,,,,,,,,,,,,,,,,*👌 🌲🌲🌲🌲 *सागर में डुबकी लगा तुझे* *मोती लेकर आना होगा,,,,,,* *तुझमे भी है कुछ खाश बात* *दुनिया को बतलाना होगा* *तू अगर रुका तो कालचक्र* *एक और तबाही दे देगा,,,,,,,* *होगा हिसाब जब कर्मों का* *इतिहा...

तब तलक़ पथिक चलते जाना....

🍁🌷🐢🐢🌷🍁 ,, *तब तलक़ पथिक चलते जाना* ,, 🐢🐢🐢🐢 *दुनिया दारी के चक्कर में* *अपना अस्तित्व मिटाओ न,,* *औरों के करतब देख रहे* *अपना भी हुनर दिखाओ न,,,,,* *तुम मुक्त गगन के पंछी हो* *उड़ने में तनिक न घबराना,,,,* *जब तक न मिले मंजिल अपनी* *तब तलक़ पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,* 🐢🐢🐢🐢🐢 *कितने भी नज़ारे नज़र पड़ें पर* *नज़र सदा हो मंजिल पर,,,,,* *नाविक मत तूफान देखना* *ध्यान लगाना साहिल पर,,,* *अतल समुंदर के अंदर से* *रत्न ढूंढकर ले आना,,,,,,,,* *जब तक न मिले मंजिल अपनी* *तब तलक़ पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,* 🐢🐢🐢🐢🐢🐢 *गीता की वाणी तुम ही हो* *तुम ही तत्वों का सार प्रिये,,,* *तुम ही हो ज्ञान की गागर और* *तुम ऊर्जा के भंडार प्रिये,,,* *कितना भी तेज हवायें हों* *तुम दीपक हो जलते जाना,,,,,* *जब तक न मिले मंजिल अपनी* *बिन रुके पथिक चलते जाना,,,,,,,,,,,,,* 🐢🐢🐢🐢🐢🐢🐢 *बीते कल का प्रतिबिंब हो तुम* *आगामी कल की सूरत हो,,,,,,* *जिस पर हैं चिन्ह विजय पथ के* *ऐ वीर तुम्ही वो मूरत हो,,,,,* *रास्ते में कोई मायूस मिले* *जज़्बा उनमे भरते जाना,,,,,,,,* *जब तक न मिले न मं...

आदर्श छात्र की परिभाषा........

📚🗞📖📃📓📒📕📚 ,,, *आदर्श छात्र की परिभाषा* ,,,,,, 📚📚📚📚📚 *शब्दों में हो कुछ भाव छिपा* *भावों में अमृत धारा हो,,,,* *वाणी हो कोमल कोयल सी* *ऐसा वक्तव्य तुम्हारा हो,,,,,,,,* *आदर्श छात्र ही भारत का* *परचम फिर से लहरायेंगे,* *आदर्श छात्र की परिभाषा,,* *आदर्श छात्र बतलायेंगे,,,,,,,,,,,,,,,,,* 📖 📚📚📚📚📚📚 *हो प्यार मोहब्बत पुस्तक से* *ग्रंथों से जिनकी यारी हो,,,,,* *जो उड़े ज्ञान के पंखों से* *जिज्ञासा भरी बखारी हो,,,,* *कोरे कागज़ के पन्नों पर* *जीवन का सार लिख जायेंगे,,* *आदर्श छात्र की परिभाषा* *आदर्श छात्र बतलायेंगे,,,,,,,,,,,,,,* 📖 📚📚📚📚📚📚📚 *भूख ,प्यास और नींद को जो* *साहस से निज दासी बोले,,,,,,* *श्रृंगार करे जो शब्दों से* *स्याही से जो होली खेले,,,,,* *रग रग में ज्वाला विद्या की* *ज्वाजल्यमान दिखलायेंगे,,,,,* *आदर्श छात्र की परिभाषा* *आदर्श छात्र बतलायेंगे,,,,,,,,,,,,,,,,* 📖 📚📚📚📚📚📚📚 *विपदा से जो न डरे कभी* *हंसकर के मिले अभावों से* *काँटों पे बिना झिझके दौड़ें* *जो डरे न गहरे घावों से,,,,,,,,* *ऐसे ही पुरुषार्थी एक दिन* *दुनि...

है अपना हिंदुस्तान कहाँ.......?

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 ,,, *है अपना हिंदुस्तान कहाँ,,,?* ,,, 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *मंदिर में बजते शंखों ने* *मस्ज़िद की तेज अजानों ने,,* *यह बात राम ने पूँछी है,,* *और पूँछी है रहमानों ने,,,,,,,* *हिन्दू मुस्लिम तो दिखते हैं* *पर दिखता है इंसान कहाँ,,,?* *ऐ ठेकेदारों बतलाओ,,,,,* *है अपना हिंदुस्तान कहाँ,,,,,,,,,,,,,?* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *जैसा गंगा का जल पावन* *वैसे ही ज़मज़म पावन है,,,,* *जैसे मंदिर अध्यात्म भरा* *वैसे मस्ज़िद मन भावन है,,,,,,* *आडम्बर तो दिख जाता है* *पर दिखता है भगवान कहाँ,,,,,?* *ऐ ठेकेदारों बतलाओ,,* *है अपना हिंदुस्तान कहाँ,,,,,,,,,,,,,?* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *माँ की ममता जाया न करो* *भाई के प्रेम को मत खोवो,,,* *जिसमे विनाश फल लगता* *ऐसा पौधा तुम मत बोओ,,,,,,,* *इस घृणा द्वेष के शाये में* *होता है कौन महान यहाँ,,,?* *ऐ ठेकेदारों बतलाओ,,,,* *है अपना हिंदुस्तान कहाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,?* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *घर आँगन सब कुछ बाँट दिया* *कम से कम दिल को मत बाटो* *मानवता के इस पीपल को* *भारत भूमि से मत ...

तेरा विनाश कर डालेगा....

🍷🍷 ,,, *तेरा विनाश कर डालेगा* ,,, 🍷🍷🍷 *ख़ुद अपनी खुशियाँ मिटा रहे,,,* *ख़ुद वैभव अपना घटा रहे,,,,* *अपनी आयु के वृहत वृक्ष को* *अपने हाथों कटा रहे,,,* *यह नशा तुम्हारी छिन्न भिन्न* *हर एक आश कर डालेगा,,,,* *यह नशा नाश का स्वामी है* *तेरा विनाश कर डालेगा,,,,,,,,,,,,* 🍷🍷🍷🍷🍷 *पीना है तो गम को पीलो* *पानी पीलो,, शरबत पीलो* *पीकर शराब गिर पड़ते हो* *गुड़ खाकर दौड़ोगे मीलों,,,,,,* *यह रोग तुम्हारी आत्मा का* *मैला लिबास कर डालेगा,,,,,,,* *यह नशा नाश का स्वामी है* *तेरा विनाश कर डालेगा,,,,,,,,,,,,,* 🍷🍷🍷🍷🍷🍷 *सड़ी मिठाई को छोड़ो* *गन्ने से फिर नाता जोड़ो,,* *अमरूद सेब केला खाओ* *मादक जग से नाता तोड़ो,,,* *मादकपन असफल उन्नति का* *हर एक प्रयास कर डालेगा,* *यह नशा नाश का स्वामी है* *तेरा विनाश कर डालेगा,,,,,,,,,,,,* 🍷🍷🍷🍷🍷🍷 *सिगरेट बीड़ी पीने वालों* *बच्चों को क्या सिखलाओगे,,,* *यमराज के आने से पहले* *तुम खांश खांश मर जाओगे,,,* *यौवन के पीपल को पल में* *यह जली घास कर डालेगा,,,* *यह नशा नाश का स्वामी है* *तेरा विनाश कर डालेगा,,,,,,,,,,,* 🍷🍷🍷🍷🍷🍷...

क्या लिखा है जिन्दगानी में..

🍁🌲🤔🤔🤔🤔🤔🤔🌲🍁 *कौन जाने क्या लिखा है,,जिन्दगानी में* 🤔🤔✍ *आसमा में उड़ रही चंचल पतंगों सेे* *बात यह हमने सुनी जल की तरंगों से,,* *सूर्य की किरणों में पलते सप्तरंगों से* *ख़ुद सुना मैंने मेरी दिल की उमंगों से,,,* *क्यों पड़ा है व्यर्थ की तू खींचातानी में?* *कौन जाने क्या लिखा है,जिन्दगानी में,,,,,* 🤔🤔🤔🤔✍ *लहलहाते पात एक दिन गिर ही जायेंगे* *पर नये पत्ते यक़ीनन फिर से आयेंगे* *डरने वाले देखते रह जायेंगे सागर* *तैरने वाले निकल कर पार जायेंगे,,,,,,,,,,,* *शौर्य की शमसीर रख अपनी कमानी में* *कौन जाने क्या लिखा है,,जिन्दगानी में,,,,,* 🤔🤔🤔🤔🤔✍ *मूढ़ता को त्याग पगले गूढ़ता को गह* *बचना है तो हर मुसीबत वीरता से सह* *गर्व की क्या बात है धारा के संग बहना* *हो सके तो आज जलधारा से उल्टा बह,,* *तुम नया अमृत्व डालो हर कहानी में,,* *कौन जाने क्या लिखा है,,,जिन्दगानी में,,,,,,* 🤔🤔🤔🤔🤔🤔✍ *देखने से आसमां को,,मिल न जायेगा* *बिन लगाये वृक्ष फल तो मिल न पायेगा,,* *कर्म भी करना पड़ेगा,,,छोड़कर आसन* *सोंच लेने से ही पर्वत हिल न जायेगा* *मत गंवाओं तुम समय अपना रवानी मे...

सैनिक से बड़ा देवता नहीं..

🍁🌲💂💂💂💂 ,,, *सैनिक से बड़ा देवता नहीं* ,,,, 🍁💂💂 *ईमान धरोहर है जिनकी* *है शौर्य बना जिनका गहना* *है फ़र्ज समाया रग रग में* *उन वीर पुरुष का क्या कहना,,,* *हम सब पर जो एहसान किये* *हम सकते उनको जता नहीं,,* *बस इतना ही कह सकते हैं* *सैनिक से बड़ा देवता नहीं,,,,,,,,,,,,* 🍁💂💂💂💂💂 *निज राष्ट्र के मुखरित अस्त्र हैं वो* *ज्वाला से धधकते शस्त्र हैं वो* *हैं आन बान हम सबकी और* *भारत माता के वस्त्र हैं वो,,,,,,,* *कर्तव्यविमुख न हुए कभी* *कर सकते कोई ख़ता नहीं,,,* *बस इतना ही कह सकते हैं* *सैनिक से बड़ा देवता नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁💂💂💂💂💂💂 *माँ बाप को अपने छोड़ दिया* *हर प्रेमपात्र को फोड़ दिया* *भारत माँ पर क़ुर्बान हुए* *हर रिश्ता नाता तोड़ दिया,,,,* *उनके बलिदान की महिमा को* *शब्दों में सकते बता नहीं* *बस इतना ही कह सकते हैं* *सैनिक से बड़ा देवता नहीं,,,,,,,,,,,,,,,* 🍁💂💂💂💂💂💂💂 *दिन रात है रहता खड़ा मगर* *न झुकने तिरंगा देता है,,,,* *ख़ुद मर जाता है लड़ लड़ कर* *न मरने पतंगा देता है,,,,,,,,,* *उसके कृतित्व की गहराई को* *हम कर सकते पता नहीं,,,* *...

दुनिया के लिए वरदान है...

🍁🍁🍁 ,,,, *दुनिया के लिये वरदान है* ,,,,, 🌲🍁 *है जलधि चरणों को धोता और मुकुट हिमराज है* *घण्टियों,शंखों की मधुरिम गूँजती आवाज़ है,,,* *ज्ञान की विज्ञान की सद्भावना की खान है,,,,,,* *अपना भारत देश दुनिया के लिए वरदान है,,,,,,,,,* 🍁🌲 *छोड़ कर के स्वर्ग आये,,क्यों यहाँ पर देवता* *क्या छुपा है इस ज़मीं में यार हमको क्या पता* *इसकी मिट्टी पर हमें अभिमान है अभिमान है* *अपना भारत देश दुनिया के लिये वरदान है,,,,,,,,* 🍁🌲 *नर है नारायण यहाँ पत्थर में भगवान है* *है यहाँ श्रद्धा व भक्ति,प्रेम का सम्मान है* *एक दूजे पर फ़िदा हर एक यहाँ इंसान है* *अपना भारत देश दुनिया के लिये वरदान है,,,,,,,,* 🍁🌲 *है अमन का मुल्क़ यह हिंसा का इसमें काम का* *झूमजाते हैं भजन पर,, काम क्या है ज़ाम का* *है यहाँ गंगा की धारा और गीता ज्ञान है* *अपना भारत देश दुनिया के लिये वरदान है,,,,,,,,,,* 🍁🌲 *जन्मभूमि,कर्मभूमि,,है नमन भारत तुझे* *कर दिया अर्पित ये तन मन और धन भारत तुझे* *हर जनम पाऊँ यहीं पर बस यही अरमान है* *अपना भारत देश दुनिया के लिये वरदान है,,,,,,,,,* 🍁🌲       ...

मर्द की औलाद हो...

🐅🐅🦁🐆 ,,,, *मर्द की औलाद हो* ,,,,, 🐅🐅🐅🐆🦁 *ऐ जवानों नौजवानों अपनी शक्ति माप लो* *ख़ून में है ज़ोश कितना अपने भीतर झाँक लो* *थरथराहट दूर हो शब्दों में फिर ललकार हो* *है समय यह क्रांति का,,,आज फ़िर हुंकार हो* *हम नही झुकते,,नहीं रुकते दिखा दो आज फ़िर* *मर्द की औलाद हो,,सबको बता आज फिर,,,,,,,,* 🐅🐅🐅🐅🐆🦁 *खो रही है पाँव के नीचे से शायद फिर जमीं* *बाग़ बंजर हो रहा है खो रही हर दिन नमी* *क्या भरोसा कब जला दें सूर्य को ये बिजलियाँ* *क्या पता कब ख़ून कर दें फूल का ये तितलियाँ,,,,,,,,* *तुम उठो,,सूरत बदल दो हर दिशा की आज फ़िर* *मर्द की औलाद हो,,सबको बता दो आज फ़िर,,,* 🐅🐅🐅🐅🐅🐯🦁 *पहले भी तुमने बचाया था सफ़ीना हिन्द का* *तुमने ही चमकाया था फ़िर से नगीना हिन्द का* *आज क्यों ख़ामोश हो,,क्यों मौन हो ऐ वीर तुम* *अपने अधिकारों के ख़ातिर हाथ लो शमशीर तुम* *इन दलालों की दलाली ख़त्म कर दो आज फिर,,* *मर्द की औलाद हो,,सबको बता दो आज फ़िर,,* 🐅🐅🐅🐅🐅🐯🦁 *उठ कमर कस ऐ जवानी,,बांध ले सिर पर कफ़न* *कर्ज़ अपना माँगता है आज फिर तेरा वतन,,* *वीर पुरुषों के चरणकमलों में जन्नत मान लो* ...

हर एक पहचान अधूरी है...

🍁 *हर एक पहचान अधूरी है* 🍁 🌲🍁 *हे ब्रम्हपुत्र! हरि हर के सुत* *हे सृष्टि सुमन!हे आदि अंत!* *तुम क्या हो यह तुम ही जानो* *पर जो भी हो,तुम हो अनंत* *अपने विराट अनुपम स्वरूप का* *कुछ संज्ञान ज़रूरी है,,,,,,,* *बिन अपना पौरुष पहचाने* *हर एक पहचान अधूरी है,,,,,,,,,,* 🌲🌲🍁 *इस विश्वपटल के मानस पर* *अद्वितीय,,अनोखा जीव हो तुम* *जिस पर भविष्य का महल बने* *उस कालखण्ड की नींव हो तुम* *हम सब हैं एक कस्तूरी मृग* *हम सबकी एक कस्तूरी है,,,,,,,,* *बिन अपना पौरुष पहचाने* *हर एक पहचान अधूरी है,,,,,,,,,,,,,* 🌲🌲🌲🍁 *तन मिला,मन मिला,,धन भी मिला* *बालपन मिला यौवन भी मिला,,* *दुनिया का बहुत कुछ मिला मग़र* *तुझको तेरा दर्पण न मिला,,,* *अपनों से भरी इस दुनिया में* *अपनी भी खोज ज़रूरी है,,,,* *बिन अपना पौरुष पहचाने,,* *हर एक पहचान अधूरी है,,,,,,,,,,,,,* 🌲🌲🌲🌲🍁 *हम हैं अतीत के राजकुँवर* *इस युग के भी शहज़ादे हैं,,,,* *इस वर्तमान के आँगन में* *उज्ज्वल भविष्य के वादे हैं,,,* *है बागडोर निज हाथ अगर* *समझो हर इच्छा पूरी है,,,,,,,,* *बिन अपना पौरुष पहचाने* *हर एक पहचान अ...

पेशे से कारीगर हूँ मैं....

🌷 *पेशे से कारीगर हूँ मैं* 🌷 🌷🌷🌷 *बिखरी कड़ियों को जोड़ जोड़* *जंजीर बनाता रहता हूँ,,,,,,,,,,,* *कभी औरों की मैं सुनता हूँ* *कभी अपनी सुनाता रहता हूँ,,,,,* *दिल और दिमाग़ में बसता हूँ* *पहले पन्ने की ख़बर हूँ मैं,,* *कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ* *पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷 *दुनिया में जिसे न मीत मिले* *मैं उसको मीत बनाता हूँ,,,,* *जिसको दुनिया ठुकराती है* *मैं उससे प्रीत निभाता हूँ,,,,,,,,* *रोते चेहरे खिल उठते हैं* *शब्दों का ऐसा असर हूँ मैं* *कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ* *पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷 *न चैन मिले जब दुनिया में* *आ जाना मेरी पनाहों में* *कोई न आश्रय दे तुमको* *आ जाना मेरी बाँहों में,,,,,,,* *दिल है मेरा शालीन शिविर* *श्रद्धा से भरा शहर हूँ मैं,,,,,* *कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ* *पेशे से कारीगर हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,* 🌷🌷🌷 *जब तक है मेरी साँस कोई* *संकट में न रहने पाये* *कोशिश है सबका गम ले लूँ* *न दर्द कोई सहने पाये,,,,* *बाँटता फिरूँ मैं मधुरिम रस* *नटखट हूँ मुरलीधर हूँ मैं* *कुछ रिश्ते रोज बनाता हूँ* ...

सूरज सा जलना है तुझे...

,,, *सूरज सा जलना है तुझे* ,,,, *हर तरफ अँगार हैं,,है जल रहा पूरा जमाना* *है कहाँ तेरी नज़र और है कहाँ तेरा निशाना,,,* *आत्मकुंठा से निकल कर इस समय का सामना कर* *शेर की औलाद है तू कायरों सा काम न कर,,* *नोंक है काटों की तीख़ी फ़िर भी चलना है तुझे* *है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,,* *झील की गहराइयों को रेत से अब पाटता चल* *जम गया है ख़ून जिनका,,उनको ऊष्मा बाँटता चल* *चढ़ते सूरज के समय में सो रहा हो जो पथिक* *एक दो थप्पड़ लगाकर उसको भी तू डाँटता चल,,,* *बीच कीचङ में कमल के जैसे फलना है तुझे* *है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,,,,,* *यार की यारी मिटेगी,,हर शमा बुझ जायेगा,,* *जंग अपनी ख़ुद लड़ो न काम कोई आयेगा,,,* *हार बैठे गर, मिटेगा नाम और निशान भी* *डट गये मैदान में तो आसमां झुक जायेगा,,,,,,,,,* *जाल है धोखे के इत उत,बच के चलना है तुझे* *है अँधेरा हर तरफ़,, सूरज सा जलना है तुझे,,,,,,,,* *आग हो तो मेघ बन कर तू बरस जा जोर से* *रेत बनकर सोख ले पानी को तू हर ओर से,,,,* *भंग कर दे व्यूह तू शत्रु का हर एक शौर्य से,* *शेर है तू डर न जाना गीदड़ों के शोर...

मौसम की तरह आनी व जानी है ज़िन्दगी...

अब क्या पता कि कैसी कहानी है ज़िन्दगी, मौसम की तरह आनी व जानी है ज़िन्दगी.... ये पाप की तपिश है या है पुण्य का कलश, कोई बता दे किसकी निशानी है जिंदगी.....? न सुख रुके न दुःख,,भला है कैसी पहेली, कुछ भी नहीं पता,,मगर पानी है ज़िन्दगी...... एहसास नहीं रूप कैसा होगा अगले पल, सागर की लहर जैसी रवानी है ज़िन्दगी..... ज़िंदा हैं मगर ज़िन्दगी को देख न सके मालूम किसे लाल या धानी है ज़िन्दगी..... तुम लाख छुपा लो इसे ये छुप न सकेगी उन्मुक्त विहंगों सी जवानी है ज़िन्दगी...... "सिद्धार्थ" आ रही है मौत ढूंढ़ने इसको हाँ,,मौत के राजा की ही रानी ज़िन्दगी........                          सिद्धार्थ अर्जुन                        9792016971

आओ फ़िर ज़ोश में आया जाये...

*आओ फ़िर ज़ोश में आया जाये* *किसी को फ़िर से यहाँ धूल चटाया जाये..* *बड़े आनन्द से जो तापते हैं घर सबका* *अब के उनके ही घर में आग लगाया जाये...* *किसी के ख़ून से यह भूमि रंग चुकी है दोस्त* *चलो उस ख़ून का कुछ कर्ज़ चुकाया जाये.....* *नचा रहे हैं हमें,,जो समझ के कठपुतली* *चलो मिलकर उन्हें इस बार नचाया जाये......* *सुकून चैन छीन बैठे हैं जो सबका यहाँ* *न नींद आये उन्हें ऐसे हिलाया जाये......* *जो फेंककर गये हैं हम सभी पे ये काँटे* *इन्ही काँटों पे उन्हें आओ चलाया जाये.....* *मिला के दूध में पानी जो बेंचते हैं यहाँ* *मिला के मिर्च उन्हें आओ पिलाया जाये.....* *कि जल रही चिता की आग बुझ नहीं सकती* *इसी चिता में इन सभी को जलाया जाये......*                         *सिद्धार्थ अर्जुन*

जय प्रयागराज..

💥,,,,, *💥जय प्रयागराज💥* ,,,,,,💥 💥💥💥 *जय प्रयागराज..जय प्रयागराज* *जय प्रयागराज....................* 💥💥💥 *अद्भुत निरुपम,निरुपाधि आप* *शाश्वत,,तप पुंज समाधि आप* *इस देव भूमि भारत विशाल के,,* *ज्योतिर्मय कांतिमय ताज,,,* *जय प्रयागराज...जय प्रयागराज........* 💥💥💥💥 *तुम सकल वृत्तियों के संगम* *तुम गंगा यमुना ,तुम ज़मज़म* *तहज़ीब एकता समता की,,,* *तुम पर हम सबको नाज़ नाज़..* *जय प्रयागराज...जय प्रयागराज...* 💥💥💥💥💥 *हे अमृत कुण्ड! अमरता दो* *दिल दिल में बहे वो सरिता दो....* *तुम श्रद्धा के जागृत स्वरूप* *तुम भक्ति की मुखरित आवाज़...* *जय प्रयागराज...जय प्रयागराज......* 💥💥💥💥💥💥 *तू स्वर्ग का एक प्रतिबिंब लगे* *बैकुंठ का स्वर्णिम बिंब लगे......* *सौंदर्य सादगी का ऐसा,,* *भौतिकता खाये लाज़ लाज़...* *जय प्रयागराज...जय प्रयागराज...* 💥💥💥💥💥💥 *सिद्धार्थ अलौकिक धाम मिले* *तेरी गोद में राम व श्याम मिले...* *मन बार बार यह मांग रहा..* *दर्शन हों तेरे आज आज...* *जय प्रयागराज.....जय प्रयागराज..* 💥💥💥💥💥💥             ...

वादा जो कर दिया...

वादा जो कर दिया तो भूलने की बात क्या? जब ख़ुद ही मिल गये तो ढूंढने की बात क्या?? बेशक़ लहर मे बह गयी है नाव आपकी, साहिल पे खड़े हो तो डूबने की बात क्या?? अंजाम-ए-वफ़ा जानके इंकार न करना,, दिल फिर से जुड़ गया,तो टूटने की बात क्या?? अब मत कहो की रूठ के वो चैन ले गयी,, जब मान ही गये तो रूठने की बात क्या?? "सिद्धार्थ" जरा बचके,,जमाना भला नहीं,, और तुम भी निकम्मे तो जमाने की बात क्या??                 सिद्धार्थ अर्जुन

तुम कहो न कहो हम समझ जायेंगे...

दिल की बेचैनियाँ,, दिल की बेताबियाँ तुम कहो न कहो,, हम समझ जायेंगे..... जो ख़्यालात हैं दर्द-ए-दिल में छुपे, तुम कहो न कहो,, हम समझ जायेंगे.... राज़ क्या है,तेरे पलकों के दरमियाँ तुम कहो न कहो,, हम समझ जायेंगे..... इस नज़र का इरादा,इशारों की ज़िद, तुम कहो न कहो,, हम समझ जायेंगे..... हो गया दिल पे "सिद्धार्थ" कैसा सितम, तुम कहो न कहो,, हम समझ जायेंगे.......                     सिद्धार्थ अर्जुन                    9792016971

फिर दीप जले....

,,, *🕯फिर दीप जले🕯* ,,,, 🕯🌷 *बिजली चमकी,,बादल गरजे* *तूफान उठा,,रिमझिम बरसे* *घर भी टूटा,,, सिर भी फूटा* *जैसे तैसे बीते अरसे,,,* *फ़िर रब ने पकड़ाई ऊँगली* *एक नये सृजन को हम निकले,,,* *मिट गया तिमिर फ़िर मानस से* *हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,,* 🕯🕯🌷 *मुश्किल का बवंडर आना है* *पर हमें नहीं घबराना है,,,* *कश्ती की तरह धारा को चीर* *आगे को बढ़ते जाना है,,* *जब चित्त नहाया पौरुष से* *सब दर्द मिटे अगले पिछले,,* *मिट गया तिमिर फिर मानस से* *हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,* 🕯🕯🕯🌷 *थक थक के रुकेगी यह काया* *पैरों को रोकेगी माया,,* *रुकना मत,,पूरा करना है,,* *वादा जो सबसे कर आया,,,,* *कर्तव्य राह दिख गयी हमे* *अब छोड़ दिये मैंने जुमले,,,,,* *मिट गया तिमिर फिर मानस से* *हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,,* 🕯🕯🕯🕯🌷 *कण से कण जोड़े जब रब ने* *तब वृहत हिमालय खड़ा हुआ,,,* *अंकुर,पत्ती,, शाखा निकली,,* *इस तरह से पौधा बड़ा हुआ,,,* *होगा विकास धीरे धीरे,,* *यह मूलमंत्र लेकर निकले,,* *मिट गया तिमिर फिर मानस से* *हर घर भीतर फिर दीप जले,,,,,,,,,,,,,,,...

जरा दर्द मेरा बंटाने तो आजा....

,, जरा दर्द मेरा बंटाने तो आजा ,,, जो कसमें हैं उनको निभाने तो आजा जरा दर्द मेरा बंटाने तो आजा......... ये संसार काफ़ी है रुलाने के ख़ातिर मेरे रहनुमा तू हँसाने को आजा........ तेरे रहते मेरी हुई हार कैसे?? मैं हारा हूँ मुझको जिताने को आजा.... चला ऐसा तूफ़ां बुझे दीप सारे अँधेरा है दीपक जलाने को आजा....... ये दर्द-ए-ज़िगर अब भला कौन समझे मेरे पीर को तू मिटाने तो आजा.......... ये कहते हो "सिद्धार्थ" मोहब्बत बहुत है कभी ये मोहब्बत जताने भी आजा......                   कवि सिद्धार्थ अर्जुन

जो दिल ने सहा वो क़हर लिख रहा हूँ...

न दिन ना हि दिन का पहर लिख रहा हूँ, जो दिल ने सहा वो, क़हर, लिख रहा हूँ...... तड़पता रहा पर, न दम मेरा निकला, मोहब्बत है ऐसा ,ज़हर, लिख रहा हूँ......... ये दिल तोड़कर के, रहेगी कहाँ पर? तेरे नाम पूरा,शहर,लिख रहा हूँ.............. क़यामत है ऐसी तेरी इस नज़र में, की सागर में उठती ,लहर, लिख रहा हूँ..... हुआ ये क्या "सिद्धार्थ" मेरी नज़र को, फ़क़त बूँद को क्यों? नहर,लिख रहा हूँ.....                  सिद्धार्थ अर्जुन                 9792016971

क्यों भटकता.....?

,,, *क्यों भटकता?* ,,,, 🍁 *क्यों भटकता?* हैं कई रास्ते,सही चुन धैर्य से निज़ ख़्वाब तू बुन बौखलाये नाग जैसे,, सिर को अपने क्यों *पटकता?* *क्यों भटकता?* 🍁 चल वहीं, जाना जहाँ है, सोंच ले,मंज़िल कहाँ है? रास्ते के बन्धनों में, बंध के जाने क्यों *अटकता..?* *क्यों भटकता?* 🍁 है दिखावे का ये मेला, जान ले,तू है अकेला,,,, फिर जली रस्सी,,को लेकर पेड़ से तू क्यों *लटकता..?* *क्यों भटकता?* 🍁 है समय,पहचान ख़ुद को, चल,बना इंसान ख़ुद को,,, व्यर्थ का आलाप लेकर, कौन है ऐसे *मटकता?* *क्यों भटकता?* 🍁 दूर तक जाना है तुझको, हर प्रभा पाना है तुझको... तो समय की बेड़ियों को चल *झटकता....* *क्यों भटकता?* 🍁              *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*         *छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय*                *9792016971* 🍁 (हमारी यह रचना हमारे उन स्नेहपात्रों को समर्पित जो,,दुनिया जानने के चक्कर में वह सब भूल गये हैं जो वह जानते थे........)

चैन ढूंढो यहीं पर मिलेगा.....

ऐसे बेचैन क्यों घूमते हो? चैन ढूंढों यहीं पर मिलेगा..... क्या हुआ फ़ूल मुरझा गया गर कल नया फ़ूल फिर से खिलेगा..... रास्ता रोके पर्वत खड़ा है,, चढ़ के देखो,ये पर्वत हिलेगा....... मंदिरों,मस्जिदों पर न लड़िये, तेरे अंदर विधाता मिलेगा........... है मोहब्बत जो दिल में तुम्हारे, झुक के दुश्मन गले से लगेगा......... आज "सिद्धार्थ" दिल खोल बोलो, सबसे हँसके हमेशा मिलेगा...........               सिद्धार्थ अर्जुन             9792016971

यह शुभप्रभात की बेला है...

,,,, *यह शुभप्रभात की बेला है* ,,,,, *धरती के दोनों छोर मिले,,एक सेतु बना ऐसा सुंदर,,* *धरती ,अम्बर तक जा पहुंची,,या धरती पर उतरा अम्बर,,* *घनघोर,,अँधेरा,,भाग उठा सूरज ने मार धकेला है,,,* *उठ शीश झुकाकर करो नमन, यह शुभ प्रभात की बेला है,,,,* *अरुणिम प्रभात,,उदयाचल में चहुँओर अरुणिमा छायी है,,* *जीवन दाता,रवि ने फिर से अपनी करुणा भिखराई है* *सोने वाले सब जाग उठे,,वीराने में अब मेला है,,* *उठ शीश झुकाकर नमन करो,यह शुभप्रभात की बेला है,,,* *पशु जाग उठे, पक्षी जागे,तू अबतक बेबस सोया है,,* *संघर्ष,समन्वय देख यहाँ,,क्यों व्यर्थ ख़्वाब में खोया है,,* *नभ में दिनकर फिर चमक उठा,अब कोई नहीं अकेला है,,* *उठ शीश झुकाकर नमन करो,,यह शुभप्रभात की बेला है,,*        *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*

तेरी दोस्ती में...

,,, तेरी दोस्ती में ,,, भुला दूँ जमाना,तेरी दोस्ती में ये दिल है दीवाना,तेरी दोस्ती में...... तेरी हर झलक में दिखे रब की मूरत, ख़ुशी का खज़ाना, तेरी दोस्ती में...... न देखें तुझे तो न दिल चैन पाये, है दिल आशिक़ाना,तेरी दोस्ती में...... हर एक साँस मेरी,तेरे वास्ते है क्या अपना बेगाना,,तेरी दोस्ती में.... जो "सिद्धार्थ" वादे निभाये नहीं थे, है सीखा निभाना,,तेरी दोस्ती में......             सिद्धार्थ अर्जुन           9792016971

कहो दिललगी में क्या होता है ऐसा..?

मैं खो बैठा ख़ुद को,,ये है प्यार कैसा कहो,, दिललगी में क्या होता है ऐसा??? न दिखती डगर न पता अब सफ़र है नज़ारों में दिखता फ़क़त हमसफ़र है, लुटा चैन मेरा,,लुटेरा है कैसा? कहो,,दिललगी में क्या होता है ऐसा?? निगाँहों में ख़्वाबों में,ख्यालों में तुम हो जवाबों में तुम हो सवालों में तुम हो.. नहीं नींद टूटी ,सवेरा है कैसा? कहो,,दिललगी में क्या होता है ऐसा??? टपकती हो बुँदे या धधकता हो शोला, दिखी जब भी तू तो ये दिल मेरा डोला,, ये दिल के शिविर का बसेरा है कैसा? कहो,,दिललगी में क्या होता है ऐसा???? मैं खो बैठा ख़ुद को,ये है प्यार कैसा? कहो,, दिललगी में क्या होता है ऐसा???              कवि सिद्धार्थ अर्जुन                9792016971

अभी थोड़ा दूर और है मंजिल....

अभी थोड़ा दूर और है, मंज़िल तो क्या,चलो,चलते हैं.......... सूरज नहीं निकला तो क्या हुआ? चलो,हम ही निकलते हैं.......... वो जो कहते हैं कि दिल में आग लगी है, बोल दो,जीतने के लिये, हम भी उबलते हैं... जिन्हें गुमान है न,अपनी शोहरत का, बता दो,ज़नाज़े ज़मीं पर ही टहलते हैं.... ये गर्दिश का हवाला क्या देना, हम सूरज हैं,उगने के लिए ढलते हैं....... वक़्त बता ही देगा "सिद्धार्थ" ये दिन हैं,,सबके बदलते हैं..... अभी थोड़ा दूर और है मंज़िल, तो क्या,,चलो चलते हैं............             कवि सिद्धार्थ अर्जुन              9792016971

दौर मिज़ाजी हैं...…..

चलो आज़माते हैं हुनर अपने अपने, ये दौर मिज़ाजी हैं,रोज थोड़े आते हैं... यूँ तो डुबकियाँ लगती ही रहती हैं, पर तलहटी तक,रोज थोड़े जाते हैं..... चलो देख लें,,मौसम की अंगड़ाई को, जरूरी है ,ये ज़लज़ले,रोज थोड़े आते हैं.. उड़ने को तो पक्षी भी उड़ा करते हैं, पर चाँद तक थोड़े जाते हैं.............. वो पकड़ना चाहते हैं हमें यारों, बोल दो,,,नज़ारे पकड़ में थोड़े आते हैं... आज खिला हूँ तो देख लो "सिद्धार्थ" हम जैसे फ़ूल रोज थोड़े आते हैं.........          कवि सिद्धार्थ अर्जुन

तब याद हमारी आयी होगी...

दिल का दर्द बढ़ा होगा तब याद हमारी आयी होगी कोई काम पड़ा होगा,तब,याद हमारी आयी होगी.... यूँ तो हमें भुलाया ऐसे,जैसे हो बीता सपना, न दिल को चैन पड़ा होगा,तब याद हमारी आयी होगी.. जला दिया था सभी खतों को कल ही उसने चुनचुन कर शायद राख़ उड़ी होगी,तब याद हमारी आयी होगी..... यूँ तो उसने गिन गिन कर हर जख़्म हमें दे डाला था, कोई जख़्म बचा होगा,तब याद हमारी आयी होगी.. क्या सिद्धार्थ भुलाकर तुझको कौन बचा है दुनिया में, शायद,,मौत दिखी होगी,तब याद हमारी आयी होगी.....                 सिद्धार्थ अर्जुन               9792016971

नज़र को नज़र की नज़र लग गयी...

नज़र को, नज़र की, नज़र लग गयी तो, नज़र का बताओ,,,नज़र क्या करे......? ख़बर की ख़बर न लगी बेख़बर को, ख़बर का बताओ,,,ख़बर क्या करे......? शहर न रहा जो,शहर से शहर तक, शहर का बताओ,,,शहर क्या करे.........? क़हर न मिटा ग़र,क़हर के क़हर से, क़हर का बताओ,,,क़हर क्या करे........? लहर न रही जो लहर की लहर में, लहर का बताओ,,,लहर क्या करे.........? ज़हर से मरे न ज़हर का ज़हर तो, "सिद्धार्थ" बोलो,ज़हर क्या करे...........?               सिद्धार्थ अर्जुन              9792016971

वह दिखता था दुबला पतला...

,,,,, दुबला-पतला ,,,,, रुख़ बदला तेज हवाओं का बेटों,बापों का माँओं का.... पग से पग मिलकर चले और, आकलन हुआ क्षमताओं का.. बह उठी क्रांति की घोर पवन लाठी ले जननायक निकला.. क्या लिखूं मैं उसके वर्णन में वह दिखता था दुबला-पतला...... पग एक बढ़ा तो लाख बढ़े, जो बीज पड़े,बन साख बढ़े उत्कृष्ट प्रभा,,घनघोर विभा, बिन रुके निरंतर,,,बाघ बढ़े.. मीठी गर्जन का क्या कहना, अरि सहित यहाँ अरिदल भी हिला, क्या लिखूँ मैं उसके वर्णन में, वह दिखता था दुबला-पतला...... तन चीर फ़क़त एक खादी का, था अमन सकल आबादी का, मित्रों के हित उत्थान का स्वर, शत्रु के हित बर्बादी का... संयम,सिद्धान्त,अहिंसा की ज्वाजल्यमान अक्षुण्ण शिला, क्या लिखूं मैं उसके वर्णन में, वह दिखता था दुबला-पतला.......            कवि सिद्धार्थ अर्जुन

नाम तेरा गुमनाम न हो जाये.....

,,, *गुमनाम न हो जाये* ,,, *ढलते पल से कभी न छुपना,* *विपदाओं में कैसा झुकना,* *पंख खुले बिन उड़े न रुकना* *समय झुकेगा,तुम न झुकना,* *तू सूरज है तेरे घर में शाम न हो जाये,* *देख पपीहे नाम तेरा,,गुमनाम न हो जाये...* *तितर-वितर हो घर चौबारा,* *कोई भी न बने सहारा,* *फिर भी माथा झुके न तेरा,* *उज्ज्वल हो परिदृश्य तुम्हारा,,* *सुलभ हो लेकिन सस्ता तेरा दाम न हो जाये,* *देख पपीहे नाम तेरा,,गुमानाम न हो जाये......* *जीवित तेरा संसार रहे,* *भू से नभ तक विस्तार रहे,* *तू रहे न रहे सृष्टि में,* *तेरी यादों का आधार रहे..* *नित नयी उड़ानों का चक्का कहीं जाम न हो जाये,* *देख पपीहे नाम तेरा,,गुमनाम न हो जाये......* *जग तारक सदा कृतित्व रहे,* *जग उद्धारक व्यक्तित्व रहे,,* *दुनिया हो जाये इधर-उधर,* *पर बना तेरा अस्तित्व रहे,,* *हर समय ध्यान रखना,,परचम बदनाम न हो जाये,* *देख पपीहे नाम तेरा,,गुमनाम न हो जाये....*               *कवि सिद्धार्थ अर्जुन*                *9792016971*

क्या ख़ूब निभायी है सनम आपने वफ़ा...

लौटा के गयी आप मेरे प्यार का तोहफ़ा, क्या खूब निभायी है सनम आप ने वफ़ा.. कैसे करूँ बयां मैं अपना दर्द आजकल, दिखती नहीं है तू मेरी हमदर्द आजकल, दिल में नहीं तूने मुझे दिमाग़ में रखा, क्या खूब निभायी है सनम आप ने वफ़ा.... कहती थी मेरे प्यार का कुछ तोड़ नहीं है, अब कह रही हो तेरा,मेरा जोड़ नहीं है,, थामा भले दिल को मग़र थोड़ा है हर दफ़ा, क्या खूब निभायी है सनम आप ने वफ़ा..... ये रूठने मनाने का कैसा फ़ितूर है, किस बात का बोलो भला तुमको ग़ुरूर है,, घाटे में हमें डाल के ख़ुद ले गयी नफ़ा, क्या खूब निभायी है सनम आपने वफ़ा....... मुस्कान मेरी तेरी जान बनी थी, खुशियां मेरी तेरी हर एक अरमान बनी थी, अब हंस दिया मैंने तो ऐसे हो गयी खफ़ा, क्या खूब निभायी है सनम आपने वफ़ा... लौटा के गयी आप मेरे प्यार का तोहफ़ा, क्या खूब निभायी है सनम आपने वफ़ा......             कवि सिद्धार्थ अर्जुन              9792016971

,,अश्कों का बाज़ार बताओ कैसा है...?,,,

अश्कों का बाज़ार बताओ कैसा है? रिश्तों का व्यापार ,बताओ कैसा है....? इश्क़ ,मोहब्बत,प्यार वफ़ा तुम क्या जानो, नफ़रत का अँगार ,बताओ कैसा है......? हर्फ़ हर्फ़ में है इज़हार शरारत का, फिर भी ये इनकार ,बताओ कैसा है.........? आते आते रुक जाते हैं लफ्ज़ कहाँ? लब पर पहरेदार ,बताओ कैसा है...........? बेचैनी दिल में,,दिल,दिलबर में अटका, और दिलबर नदिया पार,, बताओ कैसा है.......? पलकों पर है हया,, रूमानी ज़ुल्फों में,, "अर्जुन" यह श्रृंगार,,बताओ कैसा है...........?             सिद्धार्थ अर्जुन           9792016971

चल गगन के पार......

चल गगन के पार एक दुनिया बसाते हैं बादलों के बीच में चल जगमगाते हैं...... जिस अँधेरे ने छुपाया है दिवाकर को, उस अँधेरे की सभी पर्तें मिटाते हैं.... मूढ़ता,जड़ता,विमुखता कर्म पथ से क्यों? कर्मस्थल,कर्मध्वज से चल,सजाते हैं...... है नया आवेश,रग में रक्त है ऊर्जा भरा क्रांति की फिर हर तरफ़ धारा बहाते हैं..... दूर दिखते हैं जो फल,आंनद दायक हैं, सोंचना क्या है?चलो हम तोड़ लाते हैं...... देखकर दुनिया जिसे अब हार बैठी है, हर असंभव जीत को हम जीत लाते हैं.. भीरु अपनी भीरुता से बाज़ आ सकते नहीं, वीर हैं हम वीरता के गीत गाते हैं.... है समय बदलाव का बदलो नज़र अपनी, आइये फ़िर कुछ नया करके दिखाते हैं.. कौन कहता है,प्रलय में हो नहीं सकता सृजन, आइये,मिलकर,सृजन करके दिखाते हैं.....                   कवि सिद्धार्थ अर्जुन                    9792016971